Tuesday, January 24, 2012

Mera naam

Shaam k ujalon main,
Apnay naram hathon say,
Koi baat achi si,,
Koi khwaab sacha sa,
Koi,,bail ki khushboo,,
Koi seep sa lamha,,
Jab bhi likhna chahogay,,
Soch k dareechon say,,
Yaad k hawalaoon say,,
Mera naam chup chup k ,,
Tum ko yaad ayega

fareb

Esi fareb me jindgi gujar di hamne ,
ki hamari be-pahna mohobat unko khich layegi !

Kaise Kahu?

Pyar Karke Chot Dil Ko unhone Di To Hai,

Ab Is Tute Dil Ko unki Bewafai Kaise Kahu?

Hum To Kar Lenge Umar Bhar Intezaar unka

Is Dil Ko Ek Bewafa Ka Intezaar Karne Ko Kaise Kahu?

Keh To Diya Mere Band Hotho Ne Sab Kuch

ab In Bheegi Palko Se unko Kaise Kahu?

Din Raat Mujhe unki Yaad Aksar Rulati Hai

unki Yaado ko Fir Naa Aane Ko Kaise Kahu?

मेरे आशियाने से

आमद-ए गुल है मेरे आने से
और फसले ख़िज़ाँ है जाने से

मैं चला जाऊँगा यहाँ से अगर
नहीं आऊँगा फिर बुलाने से

तुम तरस जाओगे हँसी के लिए
बाज़ आओ मुझे रुलाने से

उस से कह दो कि वक़्त है अब भी
बाज़ आ जाए ज़ुल्म ढाने से

हम भी मुँह मे ज़बान रखते हैँ
हमको परहेज़ है सुनाने से

या तो हम बोलते नहीं हैं कुछ
बोलते हैं तो फिर ठेकाने से

एक पल में हुबाब टूट गया
क्या मिला उसको सर उठाने से

रूह है क़ैद जिस्म-ए ख़ाकी में
कब निकल जाए किस बहाने से

हँस के बिजली गिरा रहे थे तुम
है जलन मेरे मुस्कुराने से

क्यों धुआँ उठ रहा है गाह-ब-गाह
सिर्फ़ मेरे ही आशियाने से

अरमान मेरे दिल का

ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते
सच है कि हमीं दिल को संभलने नहीं देते

आँखें मुझे तल्वों से वो मलने नहीं देते
अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते

किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्ल
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते

परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले
क्यों हम को जलाते हो कि जलने नहीं देते

हैरान हूँ किस तरह करूँ अर्ज़-ए-तमन्ना
दुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देते

दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त
हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते

गर्मी-ए-मोहब्बत में वो है आह से माने'
पंखा नफ़स-ए-सर्द का झलने नहीं देते

माँ

तुम्ही मिटाओ मेरी उलझन
कैसे कहूँ कि तुम कैसी हो
कोई नहीं सृष्टि में तुम-सा
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।
ब्रह्मा तो केवल रचता है
तुम तो पालन भी करती हो
शिव हरते तो सब हर लेते
तुम चुन-चुन पीड़ा हरती हो
किसे सामने खड़ा करूँ मैं
और कहूँ फिर तुम ऐसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।

ज्ञानी बुद्ध प्रेम बिना सूखे
सारे देव भक्ति के भूखे
लगते हैं तेरी तुलना में
ममता बिन सब रुखे-रुखे
पूजा करे सताए कोई
सब के लिए एक जैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।

कितनी गहरी है अदभुत-सी
तेरी यह करुणा की गागर
जाने क्यों छोटा लगता है
तेरे आगे करुणा-सागर
जाकी रही भावना जैसी
मूरत देखी तिन्ह तैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसै हो।।

मेरी लघु आकुलता से ही
कितनी व्याकुल हो जाती हो
मुझे तृप्त करने के सुख में
तुम भूखी ही सो जाती हो।
सब जग बदला मैं भी बदला
तुम तो वैसी की वैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।

तुम से तन मन जीवन पाया
तुमने ही चलना सिखलाया
पर देखो मेरी कृतघ्नता
काम तुम्हारे कभी न आया
क्यों करती हो क्षमा हमेशा
तुम भी तो जाने कैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।