Sunday, October 22, 2017

ज़रा ज़रा महकता है


नजाने कोई कितना तुझे चाहूँ
तुझे याद करते-करते
हर सांस में लूँ
नाम तेरा...
बहाने कई पर जीता जाऊँ
तुम पर यूँ मरते-मरते
दिन रात ये पालूँ
ख्वाब मेरा...

बांहों में यूँ ठहरी तू
किस्मत बन के ए जानेजान,
सजदा करूँ, दुआ मांगूँ
खुदा रहे ऐसे मेहरबान...

ज़रा ज़रा महकता है...

इस थकते-हांफते शहर में

इस थकते-हांफते शहर में
कुछ चीजें बार-बार होती हैं,
जिंदगी कभी खलबली भरी रात
तो कभी फुर्सत का इतवार होती है।

बुजुर्गों के माथे की झुर्रियां
धूप पर कुहनी टिकाए होती हैं,
जिंदगी गांवों की सिंदूरी शाम
तो कभी शराब सी बदनाम होती है।

कालांतर में पढ़ी जाए
"इतिहास" वो किताब होती है,
जिंदगी कभी रोटी की खुश्बू सी महकती
तो कभी पसीनायी दुर्गंध होती है।

रहता है आंखों में डर
तो कभी प्रेम से सराबोर होती है,
जिंदगी बाप का छियालिसवाँ साल
तो कभी बेटे का 23वां साल होती है।

पेग बनाने के लिए गिलास में
उड़ेली गयी शराब होती है,
जिंदगी तर्जनी पर कसे कंचे का निशाना
तो कभी Lic के प्रीमियम का हिसाब होती है।
  
परायी नार से हुई तकरार
आजकल बलात्कार होती है,
जिंदगी टीनएज की अल्हड़ता
तो कभी वयस्क होने का अहसास होती है।

बीयर की बोतल,ब्लू फिल्में,स्त्री के वक्ष
अब ये बातें आम होती हैं,
जिंदगी टपरी के पास खड़े होकर
फूंके गए सुट्टे से निकले धुएं सी आज़ाद होती है।

इस थकते-हांफते शहर में
कुछ चीजें बार-बार होती हैं,
जिंदगी कभी खलबली भरी रात
तो कभी फुर्सत का इतवार होती है।

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग

मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है

तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए

और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
अन-गिनत सदियों के तारीक बहीमाना तिलिस्म
रेशम ओ अतलस ओ कमख़ाब में बुनवाए हुए
जा-ब-जा बिकते हुए कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म
ख़ाक में लुथड़े हुए ख़ून में नहलाए हुए

जिस्म निकले हुए अमराज़ के तन्नूरों से
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तिरा हुस्न मगर क्या कीजे
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग