Wednesday, April 22, 2015

ये मासूम प्यार

जब तक अहसासों की
नाजुकता गुदगुदाती रहेगी,
ये मासूम प्यार
दिल में बना रहेगा,
तेरी आँखे जो
बोल जाती,
तेरी साँसे जो
गुनगुना जाती,
मेरी हसरते
नया रूप पाती,
खुली आँखों के ख्वाबो
पर पट कौन डालेगा,
जो नभ छूने को बेताब हैं,
अरमानो के पंख लगे हैं,
छू लेंगे आसमाँ
तेरा जब साथ हैं।

बहुत अज़ीज़ हमें है, मगर पराया है

वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है,
बहुत अज़ीज़ हमें है, मगर पराया है
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीनों से,
तुम्हें खुदा ने हमारे लिए बनाया है
उसे किसी की मोहब्बत का एतबार नहीं,
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है
महक रही है ज़मीं चाँदनी के फूलों से,
ख़ुदा किसी की मोहब्बत पे मुस्कराया है
कहाँ से आयी ये ख़शुबू, ये घर की ख़ुशबू है,
इस अजनबी के अँधेरे में कौन आया है
तमाम उम्र मिरा दम उसी धुएँ में घुटा
वो इक चिराग़ था मैंने उसे बुझाया है

सैलाब बढ़ा जाता है

कोई जाता है यहाँ से, न कोई आता है
ये दिया अपने अँधेरे में घुटा जाता है
सब समझते हैं वही रात की क़िस्मत होगा
जो सितारा कि बुलन्दी पे नज़र आता है
बिल्डिंगें लोग नहीं हैं, जो कहीं भाग सकें
रोज़ इन्सानों का सैलाब बढ़ा जाता है
मैं इसी खोज में बढ़ता ही चला जाता हूँ
किसका आँचल है जो कोहसारों पे लहराता है
मेरी आँखों में है इक अब्र का टुकड़ा शायद
कोई मौसम हो सरे-शाम बरस जाता है
दे तसल्ली जो कोई आँख छलक उठती है
कोई समझाए तो दिल और भी भर आता है
अब्र के खेत में बिजली की चमकती हुई राह
जाने वालों के लिये रास्ता बन जाता है

रिश्ते एहसास से ख़ाली होते हैं

शाम का मंज़र जब बोझिल सा होता है
दिल मेरा क्यूँ दर्द में डूबा होता है
जो रिश्ते एहसास से ख़ाली होते हैं
उन रिश्तों को भी तो ढोना होता है
दूर तीरगी करता है जो बस्ती की
उस दीपक के तले अँधेरा होता है
दुनिया दारी की इन झूठी रस्मो से
अक्सर इंसानो को धोखा होता है
मर्ज़ी के आज़ाद जवाँ बच्चो सुन लो
बूढी आँखों में भी सपना होता है
नज़रे बद से ख़ुदा बचाये बच्चों को
रोज़ यहाँ पर एक हादसा होता है
याद किया जाता हैं उनको सदियों तक
जिनका नाम अदब में लिक्खा होता है