Wednesday, May 6, 2015

-नागफनी (बुनियाद)-

ज़मीन खोदकर उसने रोटी बोई खुश हुआ, अब सात पुश्तों की भूख मिट जायेगी जब पेड़ उगा तो नागफनी निकला, रोटी के साथ कांटे थे  उसकी नींद खुल गयी, " शुक्र है , सपना था "....
मन घबराने लगा ,सो कमरे से बाहर निकल आया  निम्न मध्यम वर्ग की इस बस्ती में एक छोटी अँधेरी कोठडी से शुरू हुयी थी उसकी जीवन लीला  अफीमची बाप और कलपती माँ के साए में कई रातें भूख में कटीं  बस तभी ठान लिया था उसने , " जो हो सो हो , पर अपने घर में रोटी की कमी ना होने दूंगा "
उसी दिन अपने सपनो की बुनियाद में उसने रोटी भर दी..
जो भी, जैसा भी उल्टा सीधा काम मिला, करता गया गैर कानूनी काम करते हुए वह धड़ाधड़ ऊंचाईयां चढ़ना लगा..
'कौन कहता है पैसा काला होता है, उसका रंग तो बस हरा ही होता है ', ..और हरियाली उसके घर पर बनी रही..
उसने उस अँधेरी कोठडी के आस पास के मकान खरीद कर अपनी अट्टालिका खड़ी कर दी अब आसपास के लोगों की धूप भी उसी के आँगन में बरसती  बस्ती के लोगों से वह बहुत ऊपर उठ चूका था यहाँ तक की कल्लन- लल्लन उसके जुड़वा लंगोटिया यार भी उस से कतराने लगे ..
एक बेटी डिप्रेशन के चलते पंखे से झूल गयी, तो बेटा सिंगापुर की जेल में सड रहा था पत्नी अब प्रस्तर प्रतिमा बन चुकी थी..
और वह ?
आज मन कर रहा था कि तोड़ डाले यह अट्टालिका ! आवाज़ दे लल्लन कल्लन को ! फिर गले लगा ले, अपने यारों को ! फिर कच्ची प्याज़ के साथ कच्ची शराब उडाये ! नमक रोटी खा कर लम्बी तान ले !
पर नागफनी खूबसूरत कैक्टस थी.. उसके काँटों में सम्मोहन अधिक था....


Poonam Dogra
 
 

कंजूस-मक्खीचूस"

"डैड, इतने रुपये होते हुए भी मुझे एक बड़ी कार नहीं दिला सकते, सब ठीक कहते हैं आप बहुत कंजूस हो।"
वो हंस दिया, ठहाकों से सारी हवेली गुंजायमान हो उठी। कुछ देर हंसने के बाद उसने अपने 15 साल के बेटे से कहा, "इस हँसी को मत भूलना, कल जब तुम्हारे बच्चे बड़े होंगे और समय से पहले कुछ मांग करेंगे, तो इसकी आवश्यकता तुम्हें भी होगी।
और शायद उन्हें भी इस हँसी में छुपा हुआ उलाहने का आँसू नहीं दिखाई देगा।"
- चंद्रेश कुमार छतलानी

वास्तविक अर्थ

"माँ , ओ माँ ! देख तो तेरे लिए क्या लाया हूँ...? "
माँ को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ ! ये उसके बेटे की आवाज़ थी ! वो उसे ही पुकार रहा था. हाँ , उसका बेटा उसके लिए कुछ लाया है...आज कई महीनों बाद...वो तो समझी थी कि बेटे ने उसे भुला दिया...घर के एक कोने में फर्नीचर की तरह पड़े रहना उनकी नियति बन गया था...पति की मृत्यु ने एकदम अकेला कर दिया था..एक समय था जब इसी घर में उनका राज चलता था...मगर जबसे बहू आई थी तबसे...
"माँ कबसे आवाज़ दे रहा हूँ ! कहाँ खोयी हो ? लो, ज़रा खोलके तो देखो ..
पैकेट में साड़ी थी...माँ की आँखें भर आयीं..
"कितना गलत समझामैंने अपने बेटे को..! वो मुझे भूला नहीं है..आज भी माँ के लिए उसके दिल में प्यार है ! "
माँ के ह्रदय से अधिक सुगम कोई स्थान नहीं...एक ही पल में वो सब कुछ भूल गयी...अकेलापन , बहू के ताने , दुःख तकलीफ...इतने महीनों में बहाए अनगिनत अश्रु.. सब कुछ ...
"माँ , तुमसे एक काम था."
माँ अपना हाथ साड़ी पर हाथ फिरा रही थी...
" बोल न बेटा .."
"माँ ...ये कुछ पेपर हैं...इन पर तुम्हारे साइन चाहिए."
"कैसे पेपर बेटा ?"
" माँ वो पिताजी ने एक प्लॉट लिया था. तीन साल पहले. उसके बारे में आज ही पता चला है. वो तुम्हारे नाम है.कहीं कोई और कब्ज़ा न कर ले. तुम ये पेपर साइन कर दो तो प्लॉट मेरे नाम........ "
माँ को आगे कुछ सुनाई नहीं दिया..वो साड़ी उन्हें चुभने लगी थी..बेटे के मन में अचानक उमड़े इस प्यार का वास्तविक अर्थ उन्हें समझ आ चुका था...
-किरण

जिन्न

खुले बाल,लाल-लाल रक्तिम आँखें जिस पर सुरमे की रेख कोई 35 बरस की उस महिला को लिए एक 60 साला बुढिया जगेसर काका के पास ले आई थी जिनकी सोखा के रूप में ख्याति थी।पूरा गांव देखने उमड़ पड़ा तो मैं भी कौतुहल वश बेटे के साथ चला गया।
"बोल कऊन है ते,काहे बिटिया को परेशान करे बदे लपटि गए...बोल नहीं ते भसम कई देब" जगेसर काका मिर्च का धुआँ सुँघाते बुदबुदाए जा रहे थे,वह झूम रही थी और अजीब आवाज में अस्पष्ट सा कुछ बोल रही थी।
तभी उस औरत ने जगेसर काका को उठा को पटक दिया...लोग भयभीत हो भागने लगे...वहीं मैं और बेटा खड़े रहे...तभी बेटा उपहास उड़ाकर हँसते हुए कहा
"पापाजी चलिए न ये सब नौटंकी है"
"हम्म तू शराब पीता है,इधर उधर बाइक दौड़ता है न..." (जब कि वो किसी व्यसन में नहीं)कहकर वो महिला बेटे की तरफ खूंखार रूप धर दौड़ पड़ी बेटा आगे वो पीछे...मैं तमाशबीन देखता रहा कुछ समझ न आया...
तभी देखता क्या हूँ... "अरे बचावा हो बचावा ...हे जगेसर काका बचाई लै हमका.... ई हमैं लील जाई बचावा...."
आगे-आगे वो औरत पीछे अपना शेरू(मेरा कुत्ता) हर्डल रेस का नजारा पेश कर रहे थे....लड़का जंजीर थामे हँसा जा रहा था....जिन्न भाग गया था।


डीडीएम त्रिपाठी 


पोल खुली

विवाह के पश्चात् दीपक के सभी संगी साथी जिनके साथ बैठके हो जाती थी धीरे धीरे छूटते गए और मन परिवार में ही रम गया .पत्नी आरती और बिटिया अंजलि ही उसकी दुनिया थे .जीवन संगिनी ही मित्र बन चुकी थी ,सुंदर ,सुशील,गृह कार्य में दक्ष आरती के साथ एक वर्ष ''फूल भी हो दर्मिया तो फासले हुए ''और फिर एक वर्ष बाद अंजलि के आने से जीवन की बगिया महक उठी थी .''होगा कोई बीच तो हम तुम और बंधेगे''वाली बात हो गयी थी और ये बात वो कह गया जिसने कभी वैवाहिक सुख देखा ही नहीं ,आश्चर्य है
सौदर्य प्रसाधनो के मामले में बढती बच्ची ही माँ की प्रतियोगी होती है .महिलाये जीवन के सभी रंग लिपस्टिक की शेड्स में ही तलाशती हैं इसके लिए पती भी घंटो खड़ा रह कर धैर्य की परीक्षा देता है . अंजलि कही से भी मम्मी की वो लिपस्टिक खोज निकलती थी और अपने होठो पर आजमाती थी मम्मी के ये देखते ही चूहे बिल्ली की दोड़ शुरू हो जाती थी .इससे पहले की बिल्ली चूहे पर झपटे वो सरपट दोड़ के पापा की गोद में चढ़ जाती थी और सुरक्षित हो जाती थी .
सुंदर ,सुशील ,गृहकार्य में दक्ष आदर्श भारतीय नारी भी लिपस्टिक के मामले में रण चंडी बन जाती है .दीपक यदा कदा घर में ही एक दो पेग लगा लेता था ,अंजलि का प्रश्न था पापा ये क्या पी रहे हैं ?मम्मी ने सिखा रखा था की ये पापा की दवाई है ,डॉक्टर ने बताई है .
एक बार दीदी के ससुरजी के यहाँ मिलने गए ,वो ७५ की उम्र में भी पूर्णतः स्वस्थ थे और दो पेग रोज़ शाम को लगते थे ,जैसे ही उन्होंने पेग बनाया अंजलि ने बा आवाज़े बुलंद एलान कर दिया ''ये वाली दवाई तो हमारे पापा भी पीते हैं ''दीपक की पोल खुल चुकी थी और वो शर्म से ज़मीन में गड़ा जा रहा था .



कपिल शास्त्री