Tuesday, April 21, 2015

फूल बोयेगा तो खुशबू मिलेगी

अभी तो आँख खुली है अभी क्या देखा है -
सुन आगे आगे देख तो क्या होता है --
फूल बोयेगा तो खुशबू मिलेगी फूलों की --
खार बोता है और फूलों के लिए रोता है --
कौन किसके नसीब से यहाँ लड़ पाया है--
एक तेरे चीखने चिल्लाने से क्या होता है --
रोते हुए आया था नंगा जाएगा भी नंगा --
बता क्या है यहाँ तेरा जिसे तू खोता है --
औलाद भी दो चार दिन रोयेगी भूल जायेगी --
उम्र भर कौन यहाँ किसके लिए रोता है --
खुशियां मिलीं या गम मत सोच सफर में--
हर आदमी अपने ही कर्मों का बोझ ढोता है --

औरतें

सुबह का झरना, हमेशा हंसने वाली औरतें
झूटपुटे की नदियां, ख़मोश गहरी औरतें

सड़कों बाज़ारों मकानों दफ्तरों में रात दिन
लाल पीली सब्ज़ नीली, जलती बुझती औरतें

शहर में एक बाग़ है और बाग़ में तालाब है
तैरती हैं उसमें सातों रंग वाली औरतें

सैकड़ों ऎसी दुकानें हैं जहाँ मिल जायेंगी
धात की, पत्थर की, शीशे की, रबर की औरतें

इनके अन्दर पक रहा है वक़्त का आतिश-फिशान
किं पहाड़ों को ढके हैं बर्फ़ जैसी औरतें

चाँद इन बदलियों में रहते हैं

ज़ख़्म यूँ मुस्कुरा के खिलते हैं
जैसे वो दिल को छू के गुज़रे हैं
दर्द का चाँद, आँसुओं के नुजूम
दिल के आँगन में आज उतरे हैं
राख के ढेर जैसे सर्द मकाँ
चाँद इन बदलियों में रहते हैं
आईनों का कोई कुसूर नहीं
इन में अपने ही अक़्स होते हैं
ग़ौर से देख ख़ाक तन्हा नहीं
साथ फूलों के रंग उड़ते हैं
कोई बीमार के क़रीब रहो
शाम ही से चराग़ सोये हैं
अलअमा शाइराने ख़स्ता हाल
कितने आशिक़ मिज़ाज होते हैं
अब शबे-हिज़्र भी नहीं आती
इन दिनों हम बहुत अकेले हैं
इन से अहवाले शब सुनो साहब
’बद्र’ जी रात रात घूमे हैं