Monday, March 26, 2012

Mai Tumhe Pyar Na De Paunga

ओ कल्पव्रक्ष की सोनजुही..
ओ अमलताश की अमलकली.
धरती के आतप से जलते..
मन पर छाई निर्मल बदली..
मैं तुमको मधुसदगन्ध युक्त संसार नहीं दे पाऊँगा
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा.
तुम कल्पव्रक्ष का फूल और
मैं धरती का अदना गायक
तुम जीवन के उपभोग योग्य
मैं नहीं स्वयं अपने लायक
तुम नहीं अधूरी गजल सुभे
तुम शाम गान सी पावन हो
हिम शिखरों पर सहसा कौंधी
बिजुरी सी तुम मनभावन हो.
इसलिये व्यर्थ शब्दों वाला व्यापार नहीं दे पाऊँगा
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा
तुम जिस शय्या पर शयन करो
वह क्षीर सिन्धु सी पावन हो
जिस आँगन की हो मौलश्री
वह आँगन क्या व्रन्दावन हो
जिन अधरों का चुम्बन पाओ
वे अधर नहीं गंगातट हों
जिसकी छाया बन साथ रहो
वह व्यक्ति नहीं वंशीवट हो
पर मैं वट जैसा सघन छाँह विस्तार नहीं दे पाऊँगा
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा
मै तुमको चाँद सितारों का
सौंपू उपहार भला कैसे
मैं यायावर बंजारा साँधू
सुर श्रंगार भला कैसे
मैन जीवन के प्रश्नों से नाता तोड तुम्हारे साथ सुभे
बारूद बिछी धरती पर कर लूँ
दो पल प्यार भला कैसे
इसलिये विवष हर आँसू को सत्कार नहीं दे पाऊँगा
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा
तुम मुझको करना माफ तुम्हे मैं प्यार नहीं दे पाऊँगा

Kitne Ekaki Pyar Kar Tumhe

हार गया तन मन पुकार कर तुम्हें
कितने एकाकी प्यार कर तुम्हें
हार गया तन मन पुकार कर तुम्हें
कितने एकाकी प्यार कर तुम्हें
कितने एकाकी प्यार कर तुम्हें
जिस पल हल्दी माँ ने लेपी होगी तन पर
जिस पल सखियों ने सौपी होंगी सौगाते
ढोलक की थापो में घुंघरू  की रुंझुन में
घुलकर फैली होंगी प्यारी बातें
उस पल मीठी सी धुन सूने कमरे में सुन
रोये मन चौसर पर हार कर तुम्हें
कितने एकाकी प्यार कर तुम्हें
हार गया तन मन पुकार कर तुम्हें
कितने एकाकी प्यार कर तुम्हें
कल तक जो हमको तुमको मिलवा देती थी
उन सखियों के प्रशनों ने टोका तो होगा
साजन की अंजुरी पर अंजुरी काँपी होगी
मेरी सुधियों ने रस्ता रोका तो होगा
उस पल सोचा मन में
आगे अब जीवन में
जी लेंगे हैस कर बिसार कर तुम्हें
कितने एकाकी प्यार कर तुम्हें
हार गया तन मन पुकार कर तुम्हें
कितने एकाकी प्यार कर तुम्हें
कल तक जिन गीतों को तुम अपना कहती थी
अखबारों मे पढ़कर कैसा लगता होगा
सावन की रातों मे साजन की बाहों में
तन तो सोता होगा पर मन जागता होगा
उस पल के जीने में आँसू पी लेने  में
मरते है मन ही मन मार कर तुम्हें
कितने एकाकी प्यार कर तुम्हें
हार गया तन मन पुकार कर तुम्हें
कितने एकाकी प्यार कर तुम्हें

खामोशियों का साज़

एक मुद्दत के बाद ही सही,

पहलु में वो आज बैठे हैं

कहने को हैं वो करीब,

मगर क्या कहें नाराज बैठे हैं



खामोशियों का साज़ लिए लबों पर,

वो यूँ चुपचाप बैठे हैं

सजदे में है जैसे सारा जहाँ,

खुदा बनके वो आप बैठे हैं



निगाहों में लेकर बेरुखी का

कुछ ऐसा वो अंदाज बैठे हैं

हम आहें भरते हैं सैलानियों की तरह,

वो बनकर ताज बैठे हैं



होंसले हमारे मांगते हैं पनाह,

वो खुले-ए-आम-बैठे हैं

चाँदनी को भी जलाने का

करके वो इंतजाम बैठे है



सादगी तो देखिए उनकी,

बिना लगाए कोई इल्जाम बैठे हैं

खामोशी ही जानलेवा है,

लफ़्जों को देकर आराम बैठे हैं



चिराग-ए-मोहब्बत नही वो आँखों में

सजाकर शोलों का बाजार बैठे हैं

शबनम भी गिरे तो खाक हो जाए,

वो गालों पर बिछाकर अंगार बैठे हैं



कत्ल हुए जाते हैं हम,

जाने कैसे कैसे लेकर वो हथियार बैठे हैं

चलो आज मर कर ही देख लें,

वो मगरूर हैं तो हम भी तैयार बैठे हैं

Nazro se dur hai lekin

YAADEIN HAZAAR DE GAYA

KHWABON MEIN KOI AAKAR YAADEIN HAZAAR DE GAYA

MILKE BICHHAD GAYA KOI PAR YE ILTEZAA DE GAYA

AAJ WO MUJHSE DOOR HAI PAR DIL KE KAREEB HAI

BANKE WO EK AJNABI SAPNON KA PYAAR DE GAYA