Saturday, April 4, 2015

कुछ एहसान चुकाने थे..!!

हम तो चलो दिवाने थे
तुम तो मगर सयाने थे
चिड़िया जाल न देख सकी
सिर्फ नज़र में दाने थे
लो वो फिर से रूठ गये
मुश्किल से तो माने थे
कुछ तो मेरी ग़ज़लें थी
कुछ उनके अफ़साने थे
हमने खुद को बेच दिया
कुछ एहसान चुकाने थे..!!

ये बादल

ये बादल न ,
छोटी सी बदली ;
पल पल छाया,
अदली बदली;
एक पल की दे,
कर शीतलता
आंसू सी झर '
झर बरसी !

किनारा


समझो एक किनारा हूँ जिसका नहीं सहारा है
नदी बनाओ या पगडंडी मिलता नही किनारा है
दगरा और समनदर भी तो कबसे वे सहारा हैं
देव देखते आये अब तक दोस्त भी करें किनारा हैं

भीख की सीख
भीख की जरूरत क्यों पडी जो मांगनी पडी
लक्ष्मण रेखा बाद भी सीता आगे क्यों बढ़ीं
पारस जी आपने संस्था तलसवाई क्या पड़ी
मांगने वाले वच्चों की जांच क्यों नही बढ़ी
सही बात है हमारे देश में भीख शर्मनाक नही
दान पुण्य माना गया पर लेने पर आफत पडी
कबीर दाश ने जो लिखा जिन मुख निकसत नाहि
देव आज हैं लिख रहे मांगन की चो लति पडी
(वे सब नर मर चुके जो कहूँ मांगन जाहि
उनसे पहले वे मुए जिन मुख निकसति नाहिं )
फेसबुक दोस्त
दोस्ती करने की तलब है
खैनी रगड़े कोण तलब है
दूर से तो सही कोई सुन्दर
नजदीक देखा वो तलब है
हाय लिखा हेलो लिखा नमश्कार प्रणाम राम लिखा
इनबॉक्स से उत्तर नहीं मिला तो फिर पोस्ट ही लिखा
समझदारी देखो कितनी की अपना तो सब कुछ लिखा
पूछना क्या था छोड़ा दोस्त बनाने का कारन नहीं लिखा
हँसी खुशी वो बोली लाइन लम्बी है
दोस्ती की मांग करनी अभी जल्दी है
कल तक ९५० अनुरोधिकाएँ लम्बित हैं
बोलो तुम्हें क्या कहना है अभी जल्दी है
देर नहीं की देव ने अमित्र लिखने में
सफर तय करना था बहुत लिखने में
हो जो गूंगा और ऊपर से जल्दी में
दोस्त रह कैसे सकता है लिखने में
राग अलापने ......
अब सवाल जवाव का समय कहाँ हम गांधी को ढूंढने लगे
भारत माँ की तुलना राजनैतिक दल के नेताओं से करने लगे
जन प्रतिनिधि को पढ़े लिखे भी वे एक प्रतिनिधि कहने लगे
समस्या को विकास का मुद्दा और विकासको अभिशाप कहने लगे
ओम नमः शिवाय की जगह राजा और रंक की तुलना करने लगे
देव विनती मानिए आपदा के समय ये क्या कोण सा राग अलापने लगे
और ....
नमस्कार वो व्यस्त कम अस्त ज्यादा हैं
समय हैं राम राम कहने का वे जपते हैं

तुम्हारा ही हिस्सा हु मैं

नफरत करोगे तो अधुरा किस्सा हूँ मै....!

मुहब्बत करोगे तो तुम्हारा ही हिस्सा हु मैं....

meri zindagi ka sawal hai...!

meri be-basi , meri iltija , mere zabt-e-ahh pe nazar toh kar...
mujhy muskura k na taal tu, meri zindagi ka sawal hai...!