Friday, April 17, 2015

बस्तियाँ दिल की

जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे
हज़ारों तरफ़ से निशाने लगे
हुई शाम यादों के इक गाँव में
परिंदे उदासी के आने लगे
घड़ी दो घड़ी मुझको पलकों पे रख
यहाँ आते-आते ज़माने लगे
कभी बस्तियाँ दिल की यूँ भी बसीं
दुकानें खुलीं, कारख़ाने लगे
वहीं ज़र्द पत्तों का कालीन है
गुलों के जहाँ शामियाने लगे
पढाई-लिखाई का मौसम कहाँ
किताबों में ख़त आने-जाने लगे

जिंदादिली

दिल के टूटने पर भी हंसना----
-----शायद ' जिंदादिली ' इसी को कहते
हैं..!
.
ठोकर लगने पर भी मंजिल तक भटकना
-------शायद ' तलाश ' इसी को कहते हैं..!
.
किसो को चाहकर भी न पाना
-----शायद ' चाहत' इसी को कहते हैं..!
.
टूटे खंडहर में बिना तेल के दिया जलाना
----शायद ' उम्मीद ' इसी को कहते
हैं..!
.
गिर जाने पर फिर से खड़ा होना
----शायद ' हिम्मत ' इसी को कहते हैं..!
और
ये हिम्मत , उम्मीद , चाहत , तलाश...!
---शायद ' जिंदगी ' इसी को कहते
हैं...!!

बात अधूरी है

" चाँद फिर.. आज भी .. निकल आया ..
आज हम फिर से.. साथ-साथ चले ;
.
' वो ' फ़िर.. डाल-डाल.. चलने लगा ..
करते क्या .. हम भी .. पात-पात चले ;
.
दिन में रौशन हुआ .. मैख़ाना कब ..
पिला ऐ साक़ी .. जब तलक़ रात चले ;
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दिन में फ़ुरसत .. ना तुझे.. ना मुझे ..
रोक दे रात को .. न अब.. ये रात ढले ;
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जवाँ ये दिल है .. जवाँ तेरी महफ़िल ..
आँखों - आँखों में ... खुराफ़ात चले ;
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बात दिन में .. उससे नहीं होती ..
ढले ये दिन .. तो कोई बात चले ;
.
बात अधूरी है .. कैसे पूरी हो ...
मिले जो तू .. तो आगे बात चले... "