" चाँद फिर.. आज भी .. निकल आया ..
आज हम फिर से.. साथ-साथ चले ;
.
' वो ' फ़िर.. डाल-डाल.. चलने लगा ..
करते क्या .. हम भी .. पात-पात चले ;
.
दिन में रौशन हुआ .. मैख़ाना कब ..
पिला ऐ साक़ी .. जब तलक़ रात चले ;
.
दिन में फ़ुरसत .. ना तुझे.. ना मुझे ..
रोक दे रात को .. न अब.. ये रात ढले ;
.
जवाँ ये दिल है .. जवाँ तेरी महफ़िल ..
आँखों - आँखों में ... खुराफ़ात चले ;
.
बात दिन में .. उससे नहीं होती ..
ढले ये दिन .. तो कोई बात चले ;
.
बात अधूरी है .. कैसे पूरी हो ...
मिले जो तू .. तो आगे बात चले... "
आज हम फिर से.. साथ-साथ चले ;
.
' वो ' फ़िर.. डाल-डाल.. चलने लगा ..
करते क्या .. हम भी .. पात-पात चले ;
.
दिन में रौशन हुआ .. मैख़ाना कब ..
पिला ऐ साक़ी .. जब तलक़ रात चले ;
.
दिन में फ़ुरसत .. ना तुझे.. ना मुझे ..
रोक दे रात को .. न अब.. ये रात ढले ;
.
जवाँ ये दिल है .. जवाँ तेरी महफ़िल ..
आँखों - आँखों में ... खुराफ़ात चले ;
.
बात दिन में .. उससे नहीं होती ..
ढले ये दिन .. तो कोई बात चले ;
.
बात अधूरी है .. कैसे पूरी हो ...
मिले जो तू .. तो आगे बात चले... "
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