Monday, April 6, 2015

ऐ मौत जरा ठहर जा

ऐ मौत जरा ठहर जा अभी कि ,
साथ चलने को राजी नहीं अपना कोई ।
वादे मुताबिक फिर लौट आई पतझड,
फिर शाख से टूटकर गिरा है पत्ता कोई ।
देख तेरी एक जिद ने क्या हाल किया ,
कि न तेरा है आज न मेरा कोई ।
बहुत थक गया हूँ दुनिया के झमेलों से ,
चाँद ,क्या सोने की जगह है वहाँ कोई ।

तेरी यादों में

तेरी यादों में दिल मेरा उदास क्यूँ है
तू पराया होकर भी इतना ख़ास क्यूँ है
यूँ तो हैं दूरियां तेरे मेरे दरमियाँ बहुत
दूर होकर भी तू मेरे इतने पास क्यूँ है
ये क्या हुआ आज अचानक मुझको
इन आँखों में इतनी नमी आज क्यूँ है
दिल तोड़ दिया मेरा कांच की तरह तूने
क्यूँ है खफा मुझसे इतनी नाराज़ क्यूँ है
दिल तोडना तो फितरत नहीं थी कभी तेरी
फिर तेरा बदला बदला ये अंदाज़ क्यूँ है
जानता हूँ तू बिछड़ गया है अब न मिलेगा
फिर भी इस दिल को तेरी तलाश क्यूँ है

हैं दिल पर आज़ार कैसे कैसे

मैं क्या कहूँ, हैं दिल पर आज़ार कैसे कैसे
दुनिया करे हैं जीना दुश्वार कैसे कैसे
किस पर करें भरोसा,और किस की बात मानें
मिलते हैं हर क़दम पर ,मक्कार कैसे कैसे
रिश्तों की अहमियत का कुछ पास ही नहीं है
होते हैं ज़ेहनीयत के बीमार कैसे कैसे
फितरत में बेहयाई जिनकी रची बसी हैं
ईमान से है ख़ारिज अय्यार कैसे कैसे
दुनिया की क्या बताये तुमको फ़रेबकारी
होते हैं आदमीयत पे वार कैसे कैसे
नादान थे जो उनकी बातों में आ गए थे
यादों में हैं वो लम्हे दुश्वार कैसे कैसे

अजनबी की तरह मिला कोई

अजनबी की तरह मिला कोई
उस से करते भी क्या गिला कोई
इश्क़ का रोग जानलेवा है
इसकी होती नहीं दवा कोई
आज ये दिल बड़ा ही भारी है
मुझको अच्छी खबर सुना कोई
मैं अकेली थी ज़ात में अपनी
काश दे जाता हौसला कोई
दाम कोई न दे सका उसका
आज बेमोल बिक गया कोई
आईने में दरार है कितनी
कितने हिस्सों में बँट गया कोई
मेरी बर्बाद हो गयी दुनिया
दूर से देखता रहा कोई
चल सिया अब यहाँ से कूच करें
है यहाँ पर कहाँ सगा कोई

एक बादल रात भर बोता रहा

ज़िंदगी को आदमी ढोता रहा
बेख़बर इससे तू बस सोता रहा
इक उदासी की नदी बहती रही
इक समुन्दर उम्र भर रोता रहा
दूर तक ख़ामोशियाँ पसरी रहीं
देर तक उसका गुमां होता रहा
गीत धरती के सभी उसने लिखे
आदमी केवल यहाँ श्रोता रहा
शहर में रिश्ते नए मिलते गए
खुद से रिश्ता ही मगर खोता रहा
वादियों में आँसुओं की इक फसल
एक बादल रात भर बोता रहा

Ibadaton ki tarah

Ibadaton ki tarah main ye kaam karta huin,
Mera usool hai pahle salaam karta huin.....
Mukhalifat se miri shakhsiyat sanwarti hai,
Main dushmanon ka bada ehteram karta huin...
Main apni jeb mein apna pata nahin rakhta,
Safar mein sirf yahi ehtemam karta huin....
Main dar gaya huin bahut sayadaar pedon se....
Zara si dhoop bichhakar qayaam karta huin,
Mujhe khuda ne ghazal ka dayaar bakhsha hai....
Ye saltanat main mohabbat ke naam karta huin.

दुश्मनो की तरह

दुश्मनो की तरह उससे लडते रहे
अपनी चाहत भी कितनी निराली रही
जब कभी भी तुम्हारा खयाल आगया
फिर कई रोज तक बेखयाली रही

दुआओ की बरकते

कहाँ अब दुआओ की बरकते वो नसीहते वो हिदायते
ये जरूरतो का खलूस है ये मतलबो का सलाम है
यूँ ही रोज मिलने की आरजू बडी रखरखाव की गुफतुगू
ये शराफत नही बेगरज उसे आपसे कोई काम है

रुसवा होने न दिया

आग भी लगाई डाला पानी भी
हवा भी यूं दी की धुआँ उठने ना दिया
कुछ ऐसे ही चर्चा हुआ जमाने मे हमारा
नाम तो खूब किया रुसवा होने न दिया

ख्वाहिशे नही रही...

भरे बाजारो से अक्सर लौट आता हूँ खाली हाथ ही...
पहले पैसे नही थे..अब ख्वाहिशे नही रही...

Zabt Ki Duniya

Jaa Koi Aur Zabt Ki Duniya Talaash Kar...!!
Aye Ishq Ab Hum Tere Qabeel Nahi Rahe...!!

Zakhm

Main Nay Chaha Thaa ___ Zakhm Bhar Jain,,,,!
Zakhm Hi Zakhm Bhar Gaey ___ Mujh Main...