ज़िंदगी को आदमी ढोता रहा
बेख़बर इससे तू बस सोता रहा
इक उदासी की नदी बहती रही
इक समुन्दर उम्र भर रोता रहा
बेख़बर इससे तू बस सोता रहा
इक उदासी की नदी बहती रही
इक समुन्दर उम्र भर रोता रहा
दूर तक ख़ामोशियाँ पसरी रहीं
देर तक उसका गुमां होता रहा
गीत धरती के सभी उसने लिखे
आदमी केवल यहाँ श्रोता रहा
शहर में रिश्ते नए मिलते गए
खुद से रिश्ता ही मगर खोता रहा
वादियों में आँसुओं की इक फसल
एक बादल रात भर बोता रहा
देर तक उसका गुमां होता रहा
गीत धरती के सभी उसने लिखे
आदमी केवल यहाँ श्रोता रहा
शहर में रिश्ते नए मिलते गए
खुद से रिश्ता ही मगर खोता रहा
वादियों में आँसुओं की इक फसल
एक बादल रात भर बोता रहा
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