Tuesday, April 14, 2015

मोहब्बत जिंदगानी है

रुस्वाइयां ही मिलती हैं मोहब्बत में दिले ए नादा
और हम समझते रहे की मोहब्बत जिंदगानी है ...
ऐसे हमदम इस ज़माने में नहीं मिला करते
दिल की बाज़ी लगाना तो आजकल नादानी है ....
जिसको दिल देके पशेमान रहे आजतक हरदम
उसने कहा मेरा प्यार उसपे मेरी मेहेरबानी है ....
पेशानी चूम के उसने मेरी एक दिन कहा
हर एक परेशानी मेरी आज से उसकी परेशानी है...
हैरान हूँ अबतक मैं अपनी किस्मत पे
कि मेरी ज़िन्दगी में भी बक्शी ख़ुदा ने एक कहानी है .....

नज़रे चुरानें लगा

कैसा जादू है ये, एक मुलाक़ात का, आईना मुझसे, नज़रे चुरानें लगा|
मेरा हमराज़ है, हमशकल हैं मेरा, मुझसे मेरा ही, चेहरा छुपाने लगा||
धड़कनें मेरी ,सौतन सी हैं बन गई , बेवफाई मेरा दिल, दिखाने लगा,
खुद पे काबू नहीं,आईना क्या करे,ये बदन साज़ सा,झनझनाने लगा||
चुगली करने लगी,मुझसे मेरी नज़र,कौन ख़्वाबों में तेरी हैआने लगा,
लब मेरे हैं, मगर मेरे हक़ में नहीं ,इन पे कोई असर है, दिखाने लगा||
उठ के, चल देती हूँ,बे-वज़ह बेसबब,बेखुदी का नशा,मुझपे छाने लगा,
अब तो "वीरान"मैं,अपने बस में नहीं,वक़्त-बे-वक़्त कोई बुलाने लगा||

रिश्तों का चलन

खून से सने रिश्तों का चलन देख रहा हूँ,
भूख से तड़पता हुआ इंसान देख रहा हूँ,
झूठी रियासतों के इस महानायक दौर में,
सबके चमकते चेहरों पे जलन देख रहा हूँ।।

बात वो है जो तुमने ठानी है

मैंने लिखनी है, बस सुनानी है
बात तो उस तरफ से आनी है.
बात जो करिये तो करिये खुलकर
दिल में रखना तो बेईमानी है.
साफ़ कहना है, साफ़ सुनना है,
अपनी आदत ये ख़ानदानी है.
आप करिये बहस या फिर चर्चा
बात तो बहता हुआ पानी है.
आप जो बात कहते हो सबसे
उसमें मेरी ही तो कहानी है.
बात बोलो तो आग जैसी है
और इसको लिखो तो पानी है.
बात वो बात नहीं जो कह दी
बात वो है जो तुमने ठानी है.

रस्मे-मीर

अगर कुछ हट के लिखता हूं तो रस्मे-मीर जाती है|
निबाहूँ तो ये डर इक़बाल की जागीर जाती है||
चलूं ग़ालिब के रस्ते पर तो फिर एहसान-दानिश ने|
जो देखे ख़्वाब उन ख़्वाबों की भी ताबीर जाती है||
अगर मैं हुस्न की शौखी नज़र-अंदाज़ करता हूं|
तो जो है इश्क के पेरों में वो जंजीर जाती है||
जो समझा दर्द साहिर ने उसे मैं छोड़ दूँ तो फिर|
किताबों से ग़रिबो-दर्द की तासीर जाती है||
हुकूमत के लिए लिक्खूं क़लम सोने के मिल जाएं|
मगर मज़लूम के हाथों से तो शमशीर जाती है||
क़लम की आबरू गर ज़ब्र के हाथों में सौंपूं हूं|
तो ज़ाया फैज़ अहमद फैज़ की तहरीर जाती है|
अगर मतलब बताता हूं हरे और गेरवे रंग का|
दिले-मासूम से यक्जिहती की तस्वीर जाती है||....

प्यासे दरियाओं में

पहला सा वो ज़ोर नही है मेरे दुख: की सदाओं में
शायद पानी नही रहा है अब प्यासे दरियाओं में
जिस बादल की आस में जोड़े खोल लिये है सुहागन नें
वो पर्वत से टकरा कर बरस चुका है सहराओं में
जाने कब तड़प और चमके सुनी रात को फ़िर डँस जाए
मुझ को एक रूपहली नागिन बैठी मिली है घटाओ में
पता तो आखिर पता था, गूंजान घने दरख़्तों ने
ज़मीं को तन्हा छोड़ दिया है इतनी तेज हवाओं में
दिन भर धूप की तरह से हम छाए रहते हैं दुनिया पर
रात हुई तो सिमट के आ जाते हैं दिल की गुफ़ाओ में
खड़े हुए जो साहिल पर तो दिल में पलकें भीग गई
शायद आँसू छुपे हुए हो सुब्हा की नर्म हवाओं में
ग़ज़ल के मंदिर में दीवाना मुरत रख कर चला गया
कौन उसे पहले पूजेगा बहस चली देवताओं में

किसे ख़बर थी

किसे ख़बर थी तुझे इस तरह सजाऊँगा
ज़माना देखेगा और मैं न देख पाऊँगा
हयातो-मौत फ़िराको-विसाल सब यकजा
मैं एक रात में कितने दिये जलाऊँगा

पला बढ़ा हूँ अभी तक इन्हीं अन्धेरों में
मैं तेज़ धूप से कैसे नज़र मिलाऊँगा
मिरे मिज़ाज की ये मादराना फ़ितरत है
सवेरे सारी अज़ीयत मैं भूल जाऊँगा
तुम एक पेड़ से बाबस्ता हो मगर मैं तो
हवा के साथ बहुत दूर दूर जाऊँगा
मिरा ये अहद है मैं आज शाम होने तक
जहाँ से रिज़्क लिखा है वहीं से लाऊँगा

Mujhe mehsoos karne do

Zara thehro...!!!! Mujhe mehsoos karne do... Yeh tanhai..! Judai aan pahunchi hai... Mujhe tum se bicharna hai...!!!! Tumhari muskurahat,guftagu,khamoshiyaan..!!! Sab kuch bhulana hai….! Tumhare saath guzre sandali lamhon ko Is dil main basana hai…!

Maikada Aakhein.

Meri Aakhon Se Milti Hai Jab Jab Teri Maikada
Aakhein.
Madhosh Karti Hai Ye Mulakatein.
Ek Sakoon Utar Aata Hai Seene Main,
Ye Dil Bhool Jata Hai Tere Diye Zakhmon Ki
Baatien…

Aankhon Mei

Zara Si Der Ko Aaye The Khaawb Aankhon Mei
Phir Us Ke Bad Musalsal Azaab Aankhon Mei Wo
Jis Ke Nam Ki Nisbat Se Raushani Tha Wujood
Khattak Rahaa Hai Wohi Aaftaab Aankhon Mei
Jinhen Mata-E-Dil-O-Jan Samajh Rahe The Ham
Wo Aa’iine Bhi Hue Behijaab Aankhon Mei

चाँद का टुकड़ा

चाँद का टुकड़ा न सूरज का नुमाइन्दा हूँ
मैं न इस बात पे नाज़ाँ हूँ न शर्मिंदा हूँ
दफ़न हो जाएगा जो सैंकड़ों मन मिट्टी में
ग़ालिबन मैं भी उसी शहर का बाशिन्दा हूँ
ज़िंदगी तू मुझे पहचान न पाई लेकिन
लोग कहते हैं कि मैं तेरा नुमाइन्दा हूँ
फूल सी क़ब्र से अक्सर ये सदा आती है
कोई कहता है बचा लो मैं अभी ज़िन्दा हूँ
तन पे कपड़े हैं क़दामत की अलामत और मैं
सर बरहना यहाँ आ जाने पे शर्मिंदा हूँ
वाक़ई इस तरह मैंने कभी सोचा ही नहीं
कौन है अपना यहाँ किस के लिये ज़िन्दा हूँ

सूखे पत्तों पर

सुरमा मिस्सी कंघी चोटी भूली है
सूखे पत्तों पर जो मैना बैठी है
कुहरे के लरज़ीदा हाथों में अक़्सर
तुलसी और अदरक की चाय छलकती है
वो जो रंग चमकता है उस टहनी पर
हाथ आये तो फूल नहीं तो तितली है
अपने ही मिर्चें पूदीने सूख गए
वर्ना दुनिया माश की दाल तो अब भी है
इस सुनसान सी शाम में ऊँचे टीले पर
ज़ुल्फें खोले वो लड़की क्यों बैठी है
शावर के नीचे घुलती जाती है शाम
मेरी आँखों पर इक टावल लिपटी है
ऐब पुराने घर का ये ही है बाबा
कोई आये न आये घंटी बजती है
तीन समंदर दो सेहरा उसके आगे
नागिन जैसी एक लकीर चमकती है

अजब मौसम है

अजब मौसम है, मेरे हर कद़म पे फूल रखता है
मुहब्बत में मुहब्बत का फरिश्ता साथ चलता है
मैं जब सो जाऊँ, इन आँखों पे अपने होंठ रख देना
यक़ीं आ जायेगा, पलकों तले भी दिल धड़कता है
हर आंसू में कोई तसवीर अकसर झिलमिलाती है
तुम्हें आँखें बतायेंगी, दिलों में कौन जलता है
बहुत से काम रुक जाते हैं, मैं बाहर नहीं जाता
तुम्हारी याद का मौसम कहाँ टाले से टलता है
मुहब्बत ग़म की बारिश हैं, ज़मीं सर-सब्ज होती है
बहुत से फूल खिलते हैं, जहां बादल बरसता है