Friday, April 10, 2015

किराये की शोहरतें

मैं तो गुबार था जो हवाओं में बंट गया
तू तो मगर पहाड़ था तू कैसे हट गया
कब तक निभाती साथ किराये की शोहरतें
कागज़ का था लिबास इशारे से फट गया
सेना-पति तो आज भी महफूज है मगर
लश्कर ही बेवकूफ था जो शह पे कट गया

दामन की सिलवटो पे बड़ा नाज़ है हमें
घर से निकल रहे थे कि बच्चा लिपट गया
वो भी नयी हवा के असर से बचा नहीं
कुछ दूर तक तो साथ चला फिर पलट गया .

Hamesha Der Kar Deta Hun Mein.

Zaruri Baat Kahni Ho ;Koyi Wada Nibhana Ho;
Usey Awaz Deni Ho;Usey Wapas Bulana Ho;
Hamesha Der Kar Deta Hun Mein
Madad Karni Ho Uski;Yar Ki Dhadhas Barhana Ho;
Bahut Derina Raston Par Kisi Se Milne Jana Ho;
Hamesha Der Kar Deta Hun Mein
Badalte Mausamon Ki Sair Main Dil Ko Lagana Ho;
Kisi Ko Yad Rakhna Ho;Kisi Ko Bhool Jana Ho;
Hamesha Der Kar Deta Hun Mein
Kisi Ko Maut Se Pahle;Kisi Gham Se Bachna Ho ;
Haqiqat Aur Thi Kuch ;Us Ko Ja K Ye Batana Ho;
Hamesha Der Kar Deta Hun Mein.

मुझे तुमसे प्यार है

मुझे तुमसे प्यार है मगर तुमपे यकीन नहीं
है,
इस वजह से मेरा तेरे साथ चलना मुमकिन नहीं
है...
मैंने जब वफा करनी चाही तब तुमने मुझे
ठुकराया,
अब वो चोटें भुलाकर तुझे अपनाना
मुमकिन नहीं है...
जाने क्या हुआ जो आज तुम लौटकर पास
आए हो,
आज मुझे क्या हुआ, यह भी बताना मुमकिन
नहीं है..
जिन जख्मों को भरने में अभी कई मौसम
लगेंगे,
उनको फिर से कोई ठेस लगाना मुमकिन
नहीं है..
तुमसे फिर दिल लगाना अब मुमकिन नहीं है ।।

एक लड़की थी

एक लड़की थी जिसके सपने मेरे घर तक आते थे
एक लड़की थी जिसके अपने भी लड़कर थक जाते थे
एक लड़की थी जिसके आंसू भी रोये काली रातों में
एक लड़की थी अभागिन लकीरें थी जिसके हाथों में
वो लड़की पगली निर्मोही न जाने कैसे मान गयी
खुद को कुनबे पर दाव लगा क्या करने को ठान गयी
किसी अनजाने का हाथ पकड़कर वो फिर चली गयी
अपनों के ही मोह में आकर अपनों से ही छली गयी
मैं भी था जिसके ख्वाबों का ना उसने ख्याल किया
मैं भी था जिसने उससे फिर न कोई सवाल किया
मैं भी था उन डायन रातों में खुद को तनहा पाता था
मैं भी था लुभावन बातों से खुद को ही समझाता था
जाने क्यों हम दोनों से ये घोर प्रेम-अपराध हुआ
मिट गयी यादें धीरे धीरे फिर न कोई संवाद हुआ
जीवन की भाग दौड़ में यूँ ही इक दशक बीत गया
नियति से लगी होड़ में यूँ ही जीवन-संगीत गया
समंदर की सब लहरों में उसका अक्स खोजता रहा
वो बात नहीं इन चेहरों में यह शख्स सोचता रहा
सुना है वह लड़की अब रोते रोते हंसती है
उसके महल तले प्रेम-स्मृतियों की बस्ती है
अपनी बेटी को गले लगा वो मेरी बातें करती है
अपनों और सपनो की हर इक आहट से डरती है
मन की व्यथा-कथा तेरे देवता कहाँ सुनते हैं
खैर जाने दो आओ ना अब नए ख्वाब बुनते हैं

जाने क्या थी

मेरे सीने पर वह सर रक्खे हुए सोता रहा
जाने क्या थी बात मैं जागा किया रोता रहा
वादियों में गाह उतरा और कभी पर्वत चढ़ा
बोझ सा इक दिल पे रक्खा था जिसे ढोता रहा
गाह पानी गाह शबनम और कभी ख़ूनाब से
एक ही था दाग़ सीने में जिसे धोता रहा
इक हवा ए बेताकां से आख़िरश मुरझा गया
जिंदगी भर जो मोहब्बत करके शजर बोता रहा
रोने वाले ने उठा रक्खा था घर सर पर मगर
उम्र भर का जागने वाला पड़ा सोता रहा
रात की पलकों पे तारों की तरह जागा किया
सुबह की आँखों में शबनम की तरह रोता रहा
रोशनी को रंग करके ले गए जिस रात लोग
कोई साया मेरे कमरे में छिपा रोता रहा

बढ़ते हुए गम आते हैं

कोई लश्कर है कि बढ़ते हुए गम आते हैं
शाम के साये बहुत तेज कदम आते हैं
दिल वो दरवेश है जो आंख उठाता ही नहीं
उसके दरवाजे पर सौ अहल-ए-करम आते हैं
मुझसे क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिए
कभी सोने, कभी चांदी के कलम आते हैं
मैंने दो-चार किताबें तो पढ़ी हैं लेकिन
शहर के तौर-तरीके मुझे कम आते हैं
खूबसूरत-सा कोई हादसा आंखों में लिए
घर की दहलीज पर डरते हुए हम आते हैं

जिंदगी जीने की ख्वाहिश

जिंदगी साफ़ बयां करती है मिट जाने को,
मैंने फिर घूर के देखा है क्या पैमाने को.
कितना बैचैन-ओ-बेबस है ये दिले-नादां,
ज़िद न करता है कहीं और अब ये जाने को,
सांस लेकर तो लगा था कि हैं ज़िंदा हम भी,
फिर क्या समझेगा कोई और इस दीवाने को.
सिर्फ पाने की तमन्ना में उसे यूं भटका,
मैंने छोड़ा नहीं मसजिद को न बुतखाने को.
जिंदगी जीने की ख्वाहिश ही फकत थी बाकी,
बरना बाकी न बचा कुछ मेरे कर पाने को.
सांस तो मेरी तरह और भी लेते थे मगर,
न था पीने को और ना ही था कुछ खाने को.
मरता अपनी ख़ुशी से है यही कहते अक्सर,
कोई कहता न कभी जलने की परवाने को.
अब कहेंगे भी क्या शान-ओ-हालत अपनी,
शायरी शौक़ बनी जब न था कमाने को.
कितने नादीदा रहे ये भी बतायें किसको,
हम ने आँखों से पीया लरजते पैमाने को.
यार जाएँ बला से दहरो-हरम की जानिब,
'अली' गर जाएगा तो जायेगा मयखाने को.




पैमाने = शराब का गिलास, तमन्ना - इच्छा, बुतखाने = मंदिर, ख्वाहिश = आकांक्षा, नादीदा = लालायित/ललचाते, लरजते = छलकता हुआ, दहरो-हरम = मंदिर और मस्जिद, जानिब = ओर/तरफ, मयखाने = मदिरापान का स्थल।

किसी को किसी से प्रेम नहीं

देवता नहीं ,दरिंदे नजर आते हैं
किसी को किसी से प्रेम नहीं
मतलब परस्त नजर आते हैं ,
कोई किसी को सम्मान नहीं देता
स्वयं दूसरों से मान सम्मान चाहते हैं
कोई भी किसी को देना नहीं चाहता
पर कुछ ना कुछ लेना ही चाहते हैं ,
घर में सबके बहु बेटियां हैं मगर
दूसरों की ,नजर भर देखना चाहते हैं
अपनी तो संभाली नहीं जाती हैं पर
दूसरों की इज्जत संभालनी चाहते हैं ,
अपनी तो खीचड़ रही है चौराहों पर
दूसरों पे कीचड उछालनी चाहते हैं
अपना चेहरा तो पूता है गंदगी से
दूसरों के चेहरे को पोतना चाहते हैं ,
अब कैसे कहें हम आपसे क़िहम भी
बाहर निकल कर कुछ देखना चाहते हैं
पर जनता जनार्दन का ये विद्रूप रूप
देखने मात्र से ही हम क्योँ घबराते हैं |

उस मौत को सलाम !!

अपने लिए तो हर कोई मांगता है दुआ
जो औरो के लिए मांगे
उस दुआ को सलाम !!

अपनी औलाद तो हर कोई पालता है
जो अनाथ को पाले
उस जज्बे को सलाम !!
अपने लिए तो हर कोई जीता है
जो औरो के लिए जिए
उस जीवन को सलाम !!
अपने लिए तो हर कोई लड़ता है
जो औरो के लिए लड़े
उस हौसलों को सलाम !!
अपनी मौत तो हर कोई मरता है
जो किसी के खातिर जान दे
उस मौत को सलाम !!