Saturday, April 25, 2015

समंदर उतर गए

साहिल पर रुक गए थे ज़रा देर के लिए ,
आँखों से दिल में कितने समंदर उतर गए ,
जिन पर लिखी हुई थी मोहोब्बत की दास्ताँ ,
वो चाक चाक पुर्जे हवा में बिखर गए ,
पाया जो मुस्कुराते हुए कह उठी बहार ,
जो ज़ख्म पिछले साल लगाए गए थे भर गए ......

अल्हड़ सी लड़की

सांवली
मुस्कुराती
अल्हड़ सी लड़की
चुप-चाप
तोड़ने लगी
कुछ दीवारें खड़ी
आस-पास,
रिश्तों की गरिमा
या गुलामी का जेलखाना ,

सांवली सी लड़की
उन्मुक्त,
ऊंचा ,
बहुत ऊंचा,
उड़ने की चाह लिए
मुस्कुराती
बेड़ियां
मर्यादा की ,
संस्कृति की
एवं एकतरफा त्याग की
तोड़,
लाल सूरज से
मिलने चल निकली,
सांवली सी लड़की
सूरज की लाली में
दरांती सी दमकती ही
कुल्हाड़ियों सा चलती है
हथौड़ों सा खनकती है
सांवली सी लड़की
जब "लॉन्ग मार्च" पर निकलती है
नई दुनिया में विचरती है ..........!!!!