साहिल पर रुक गए थे ज़रा देर के लिए ,
आँखों से दिल में कितने समंदर उतर गए ,
जिन पर लिखी हुई थी मोहोब्बत की दास्ताँ ,
वो चाक चाक पुर्जे हवा में बिखर गए ,
आँखों से दिल में कितने समंदर उतर गए ,
जिन पर लिखी हुई थी मोहोब्बत की दास्ताँ ,
वो चाक चाक पुर्जे हवा में बिखर गए ,
पाया जो मुस्कुराते हुए कह उठी बहार ,
जो ज़ख्म पिछले साल लगाए गए थे भर गए ......
जो ज़ख्म पिछले साल लगाए गए थे भर गए ......
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