Thursday, May 17, 2012

उसी की तरहा मुझे सारा ज़माना चाहे

उसी की तरहा मुझे सारा ज़माना चाहे ,

वो मेरा होने से ज्यादा मुझे पाना चाहे ?.



मेरी पलकों से फिसल जाता है चेहरा तेरा ,

ये मुसाफिर तो कोई और ठिकाना चाहे .



एक बनफूल था इस शहर में वो भी ना रहा,

कोई अब किस के लिए लौट के आना चाहे .



ज़िन्दगी हसरतों के साज़ पे सहमा-सहमा,

वो तराना है जिसे दिल नहीं गाना चाहे .



हम अपने आप से कुछ इस तरह हुए रुखसत,

साँस को छोड़ दिया जिस तरफ जाना चाहे .

परछाई

मैं छुप गया हूं मेरी खुद की ही परछाई में ,

चराग ए दिल जो जलाये वो ढूंढ़ ले मुझ को ..."

अकेला हूँ मैं

अब उसे कैसे बताऊँ कि अकेला हूँ मैं ,

भीड़ में मुझ को घिरा देख के जो लौट गया ..!!

तेरी उम्मीद

"तेरी उम्मीद, मिटते-मिटते भी,

एक उम्मीद छोड़ जाती है ....."

जीना और मुश्किल है

गिरेबा चाक करना क्या है, सीना और मुश्किल है
हर एक पल मुस्करा कर, अश्क पीना और मुश्किल है
हमारी बदनसीबी ने हमे इतना सिखाया है
किसी के इश्क में मरने से, जीना और मुश्किल है !!!!!

मुझे अब डर नहीं लगता......

मुझे अब डर नहीं लगता......

किसी के दूर जाने से, ताल्लुक टूट जाने से
किसी के मान जाने से, किसी के रूठ जाने से

मुझे अब डर नहीं लगता......

किसी को आजमाने से, किसी के आजमाने से
किसी को याद रखने से, किसी को भूल जाने से

मुझे अब डर नहीं लगता......

किसी को छोड़ देने से, किसी के छोड़ जाने से
ना शमा को जलाने से, ना शमा को बुझाने से

मुझे अब डर नहीं लगता......

अकेले मुस्कराने से, कभी आंसू बहाने से
ना इस सरे जमाने से, हकीकत से फ़साने से

मुझे अब डर नहीं लगता......

ना तो इस पार रहने से, ना तो उस पार रहने से
ना अपनी जिंदगानी से, ना एक दिन मौत आने से

मुझे अब डर नहीं लगता, मुझे अब डर नहीं लगता......!!!

रहते हैं ख्यालों मैं

आज कल वोह हम से बात नहीं करते हैं
रात से दिन और दिन से रात नहीं करते हैं

आते रहते हैं ख्यालों मैं हर पल
पर असलियत मैं मुलाकात नहीं करते हैं

कहाँ हैं, कैसे हैं और किस हाल मैं हैं हम
बेरहम कोई सवालात नहीं करते हैं

अश्कों मैं डूब गयी हैं पलकें और फिर जिंदगी भी
बंद बरसना यह अश्क-ऐ-जज़्बात नहीं करते हैं

भूल गए हैं मुस्काना और कोशिश भी छोड़ दी है अब तो
क्या करें मंज़ूर यह हालात नहीं करते हैं

प्यार करते हैं हम उनसे साचा कोई बताये उन्हें उफ़
कोई कसूर हम अजी, हजूरात नहीं करते हैं

खफा क्यूँ हैं? यह पता हो तो मन लें उन को
पर वोह तो कोई भी इशारात नहीं करते हैं

इस दरख़्त के पत्तों पे जो शबनम है सूख न जाए कहीं
कह दो उनसे किसी की जिंदगी यूँ ही बर्बाद नहीं करते हैं