Tuesday, May 22, 2012

खुमार-ऐ-इश्क


उफान समंदर में आया है अभी अभी !
रुख से पर्दा उसने हटाया है अभी अभी !!

ग़म हो भी तो क्या, मुझे किसी भी दर्द का !
अब-ऐ-हयात बन वो आया है अभी अभी !!

पिलाता ही रह, आज की रात तू साकी !
बाद मुद्दत मुझे होश आया है अभी अभी !!

नज़र न लगाओ, ओ नादाँ तारों !
सनम पे मेरे नूर आया है अभी अभी !!

ठहर कुछ पल, ऐ शब्-ऐ-शोख तू !
खुमार-ऐ-इश्क छाया है अभी अभी !!

सहला लेने दो इन हसीन ज़ख्मों को !
महबूब ने सितम ढाया है अभी अभी !!

मोहोब्बत मोम का घर है

वो कहती है सुनो जाना मोहोब्बत मोम का घर है
तपिश ये बदगुमानी की कहीं पिघला न दे इसको

मैं कहता हूँ की जिस दिल में जरा भी बदगुमानी हो
वहां कुछ और हो तो हो मोहोब्बत हो नहीं सकती
...
वो कहती है सदा ऐसे ही क्या तुम मुझ को चाहोगे
की मैं इस में कमी बिलकुल गंवारा कर नहीं सकती

मैं कहता हूँ मोहोब्बत क्या है ये तुम सिखाया है
मुझे तुम से मोहोब्बत के सिवा कुछ भी नहीं आता

वो कहती है जुदाई से बहुत डरता है मेरा दिल
की खुद को तुम से हट के देखना मुमकिन नहीं है अब

मैं कहता हूँ यही खटके बहुत मुझको सताते है
मगर सच है मोहोब्बत में जुदाई साथ चलती है

वो कहती है बताओ क्या मेरे बिन जी सकोगे तुम
मेरी बातें, मेरी यादें, मेरी आँखें, भुला दोगे

मैं कहता हूँ कभी इस बात पर सोचा नहीं मैंने
अगर एक पल को भी सोचूं तो साँसें रुकने लगती है

वो कहती है तुम्हे मुझसे मोहोब्बत इस कदर क्यों है
की मैं एक आम सी लड़की तुम्हे क्यों ख़ास लगती हूँ

मैं कहता हूँ कभी खुद को मेरी आँखों से तुम देखो
मेरी दीवानगी क्यों है ये खुद ही जान जाओगी

वो कहती है मुझे वारफ्तगी से देखते हो क्यों
की मैं खुद को बहुत कीमती महसूस करती हूँ

मैं कहता हूँ मता-ऐ-जां बहुल अनमोल होती है
तुम्हे जब देखता हूँ जिंदगी महसूस करता हूँ

वो कहती है मुझे अल्फाज़ के जुगनू नहीं मिलते
तुम्हे बतला सकूँ दिल में मेरे कितनी मोहोब्बत है

मैं कहता हूँ मोहोब्बत तो निगाहों से छलकती है
तुम्हारी ख़ामोशी मुझसे तुम्हारी बात करती है

वो कहती है बताओ न किसे खोने से डरते हो
बताओ कौन है वो जिसे ये मौसम बुलाते है

मैं कहता हूँ ये मेरी शायरी है आईना दिल का
बताओ क्या तुम्हे इस में नज़र आया

वो कहती है की सुनिए जी बहुत बातें बनाते हो
मगर सच है ये बातें बहुत शाद रखती हैं

मैं ये कहता हूँ ये सब बातें फ़साने ये सब एक बहाना है
की पल कुछ जिंदगानी के तुम्हारे साथ कट जायें

फिर उसके बाद ख़ामोशी का दिल रक्स होता है
निगाहें बोलती हैं और लब खामोश रहते हैं

शायद वोह फूल था

तुझसे गिला मैं जिंदगी करता फजूल था,
चुपके से दर्द झेल के मरना कबूल था.

पैरों के नीचे कांटे अब दर्द नहीं देते,
जो चुभ गया है अब के शायद वोह फूल था.
...
दिल तोड़ देना हर बात पे उसकी यह आदत थी,
ले के ज़ख़्म गिला न करता, मेरा असल था.

मुझे गले लगा के रोया, हमदम भी रह गया,
न जाने किस नशे में कर गया वोह भूल था.

मेरे तुम से कैसे कैसे रिश्ते हैं

दिल की ताक़ पे दिया जलाने आऊंगा
मैं तुमको कुछ याद दिलाने आऊंगा

मेरे दर्द को तुम भी ना सह पाओगे
अपने आंसुओं से तुम्हें रुलाने आऊंगा

शौक बहुत था जिन गलियों में बसने का
वहीँ पे एक दिन ख़ाक उड़ाने आऊंगा

मेरे तुम से कैसे कैसे रिश्ते हैं
तुमको एक बार और बताने आऊंगा

बुझ भी जायेंगी ये सांसें फिर भी मैं
रोज़ तुम्हारे नाज़ उठाने आऊंगा

जीतने दूँगा तुम्हें हर बाज़ी और फिर
अपनी हार का जश्न मनाने आऊंगा...!!!!

maa

Maa, sapno ki paliki me muje baithake,
maa, apni jannat si god me muje uthake,
maa sahla de sar mera tu fir usi tra,
maa m rota hu k tu vaps duniya me laut aa,
maa tere bin m sbkuch bhulaye baitha hu,
maa tuje m apni ruh me bsaye baitha hu,
maa mera ye dukh drd tu baatne to aa,
maa m glti krta hu to daatne to aa,
maa meri kaanpte bolo ko ik saaj to de,
maa usare se nikalke muje ik awaj to de,
maa m pyasa hu k mujko pani pila de,
maa apni roti me se ek tukda khila de,
maa pas baithake aanchal se pasina ponch de,
maa mere hr khyal ko tu apne pyar jsi soch de,
maa ghr suna ho gya h tere bina,
maa muskil jina ho gya h tere bina,