Tuesday, May 22, 2012

शायद वोह फूल था

तुझसे गिला मैं जिंदगी करता फजूल था,
चुपके से दर्द झेल के मरना कबूल था.

पैरों के नीचे कांटे अब दर्द नहीं देते,
जो चुभ गया है अब के शायद वोह फूल था.
...
दिल तोड़ देना हर बात पे उसकी यह आदत थी,
ले के ज़ख़्म गिला न करता, मेरा असल था.

मुझे गले लगा के रोया, हमदम भी रह गया,
न जाने किस नशे में कर गया वोह भूल था.

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