Monday, March 30, 2015

तेरी गली का पता

याद है मुझे आज भी तेरी गली का पता,
शहर छोड़े बरसों हुये ये अलग बात है!

हर इक चिराग कि लो

हर इक चिराग कि लो ऐसी सोई-सोई थी
वो शाम जैसे किसी से बिछड के रोयी थी
नहा गया थे मै कल जुगनुओ कि बारिश में
वो मेरे कंधे पे सर रख के खूब रोयी थी
कदम-कदम पे लहू के निशान ऐसे कैसे है
ये सरजमी तो मेरे आंसुओ ने धोयी थी
मकाँ के साथ वो पोधा भी जल गया जिसमे
महकते फूल थे फूलो में एक तितली थी
खुद उसके बाप ने पहचान कर न पहचाना
वो लड़की पिछले फसादात में जो खोयी थी.

उसके ख्यालों में

मैंने जिससे प्यार किया है याद हमेशा आता है।
हर पल उसका ही चेहरा आँखों में मुस्काता है।
उसको लेकर जाने क्या क्या मन में सोचा करता हूँ ,
इन बेचैनी सी भर जाती तनहा दिल घबराता है।
आँखों ने जब से था उसकी सूरत का दीदार किया ,
नहीं दूसरा कोई इनको कभी ज़रा भी भाता है।
नहीं मिले जो अगर कभी वो लुटा पिटा सा लगता हूँ ,
और सामने आ जाए तो तन पत्थर हो जाता है।
उसकी बातें कानों में बस शहद घोलती रहतीं हैं ,
ज़रा ज़रा में रूठा करना उसका अब याद आता है।
कोई चाहे प्यार कहे या इसको इक दीवानापन ,
उसके ख्यालों में मानों ये वक्त ठहर सा जाता है।

बात लिखनी है

मुझे क्या बात लिखनी है
कि अब मेरे लिए
कभी चांदी कभी सोने की
कलमें आती हैं.. ...