Monday, March 30, 2015

हर इक चिराग कि लो

हर इक चिराग कि लो ऐसी सोई-सोई थी
वो शाम जैसे किसी से बिछड के रोयी थी
नहा गया थे मै कल जुगनुओ कि बारिश में
वो मेरे कंधे पे सर रख के खूब रोयी थी
कदम-कदम पे लहू के निशान ऐसे कैसे है
ये सरजमी तो मेरे आंसुओ ने धोयी थी
मकाँ के साथ वो पोधा भी जल गया जिसमे
महकते फूल थे फूलो में एक तितली थी
खुद उसके बाप ने पहचान कर न पहचाना
वो लड़की पिछले फसादात में जो खोयी थी.

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