शायराना सी ज़िंदगी मायूस लगती है कभी कभी,
और एक टीस सी दिल में उठती है कभी कभी ।
पाया ही कहाँ था तुझको, और खो दिया है मैंने,
नसीब के जुल्मो सितम को, करम का नाम दिया है मैंने,
मैं भूल ना पाया तुमको मगर, तुम बन गए ख्यालों में हमसफ़र,
जुदा होकर भी तू मुझे, अपनी लगती है कभी कभी ।
साँसों के बिना जी लेता, तुम बिन जियूँ कैसे,
आँखों के समंदर से, हर वो बूँद पियूं कैसे,
मेरी आँखों से तमन्नाएँ बह गयीं, तू मगर मेरे दिल में रह गयी,
तेरे बिना ये ज़िंदगी, थमी सी लगती है कभी कभी ।
ज़ख्मी-ए-दिल का हर ज़ख्म, तुझे पल पल बुलाता है,
जो भूल गए तुम, वो समां मुझे आज याद आता है,
तुम मगर मुझको ख्यालों में ना लाना, मेरी फिक्र में न तुम आँसू बहाना,
आजकल नींद मुझे भी आ जाती है, कभी कभी ।