Thursday, June 2, 2011

वो फैसले.

अजब कमाल है..अकसर सही ठहरते है,
वो फैसले... जो कभी सोचकर नही होते.

वफ़ा

उसने तो नाकामी-ऐ-मुहब्बत का हर इल्ज़ाम मेरे सर कर दिया,
मैंने तो बदला उसकी बेरुखी का भी अपनी वफ़ा से भर कर दिया....

मासुम सा बच्चा

मेरे दिल के कीसी कोने मे एक मासुम सा बच्चा...
बडो की देखकर दुनिया बडा होने से डरता है!!

aaina

kasoor mera hi tha jo chaah thi tera aaina hone ki
fitrat teri ki shakl kharab ho to tu aaina tod deta hai

fitrat

milne bichadne ko mat naam de kudrat ka
jo bhi paya maine sirf kamal hai teri fitrat ka

दिल तुझसे लगाकर

बहती रही आँख से बूंदे बराबर,
देखा नहीं कभी हिसाब लगाकर,
रस्म-ऐ-वफ़ा हम यूँ निभाकर,
पछताए है दिल तुझसे लगाकर,

fitrat insan ki

fitrat insan ki kuch aisi ho gayi hai aaj
ki machli saagar me paani talash rahi hai

खयाल कर,

कभी,मेरा भी, खयाल कर,
कभी, तू भी तो, कमाल कर !
अपने , आईने की तरह,
रख, मुझको भी, संभाल कर !

कागझ की नाव

कुछ लोग सवार है कागझ की नाव पर,
तोहमत तलाशते है हवा के दबाव पर...!

गुलिस्ता तुजसे

एक भी फूल पर हालां कि तेरा नाम नहीं,
फिर भी यह सच हे कि गुलिस्तां है गुलिस्ता तुजसे !

वो ऐसा गया

वो ऐसा गया जीवन से,
.........कि काम उम्र भर का,
..................इंतज़ार भी आखिर आ न सका,

गुजरे वक़्त सा जो एक बार,
.........गुजर गया, सो गुजर गया,
..................लौट कर फिर आ न सका....

insan sa Q hai .

Mitti ka bana hai to ghul Q nahi jata
Pathar ka agr hai to phr insan sa Q hai ..

ghum ho gaye hain

insaan ne to apne liye kate jangal
ab kahta hai chete kam ho gaye hain

khud ke andar dhundhta nahi khushi,aur
kahta hai ki zindagi me ghum ho gaye hain

kudarat bhi pareshaan ho gaya ab
ki itni tadaad me hum ho gaye hain

majahab ke naam par bah raha khun
ki aise to humare karam, ho gaye hain

khuda bhi aaj sahma hua baitha hai kahin
ki yahan aaye use kitne janam ho gaye hain

गुलशन छोड़ आए

तेरी ख़ुशी की खातिर हम वो गुलशन छोड़ आए थे,
वरना हम हर कली के मुस्कराने की वजह थे उन दिनों....

khayal

aaya hi tha khayal ki aankhe chhalak padi....
aansu kisiki yaad se kitane karib the !!

जिक्र-ऐ-वफ़ा

मैं जिक्र-ऐ-वफ़ा ही महफ़िल में करता रहूँगा हमेशा,
जो मैं किया है उम्र भर फिर बात उसी की क्यूँ न करूँ....

जिक्र-ऐ-वफ़ा

मैं जिक्र-ऐ-वफ़ा ही महफ़िल में करता रहूँगा हमेशा,
जो मैं किया है उम्र भर फिर बात उसी की क्यूँ न करूँ....