Tuesday, May 15, 2012

मुझको कोई हसरत नहीं


कैसे कहूँ ज़िन्दगी को उसकी जरूरत नहीं,
झूठ कहता हूँ जो कहता उससे मोहब्बत नहीं.

जी कहता है चल किसी मयखाने में,
आज कुछ ठीक अपनी तबियत नहीं.

होश में ना सही नशे में ही कह दूंगा,
उसे छोड़कर जहाँ में किसीसे निस्बत नहीं.
( निस्बत = रिश्ता )

मैं कर तो लूँगा इज़हार कुछ हिम्मत जुटाकर,
पर हो इकरार कभी ऐसी मेरी किस्मत नहीं.

दिल लगाओगे तो दिल टूटेगा ही,
ये हकीक़त है यारों कोई नसीहत नहीं.

जीता हूँ इसलिए की अब मरने की फुर्सत नहीं,
वरना जीने की यारों मुझको कोई हसरत नहीं.

रिश्ते नाते तोड़ चले

लो अपना जहाँ दुनिया वालो, हम इस जहाँ को छोड़ चले,

जो रिश्ते नाते जोड़े थे,वो रिश्ते नाते तोड़ चले,

तकदीर की आंधी गर्दिश ने, जो खेल खिलाये थे खेल चुके,

हर चीज़ तुम्हारी लौटा दी, हम ले कर नहीं कुछ साथ चले,

फिर दोष ना देना ऐ लोगो, हम देख लो ख़ाली हाथ चले,

ये राह अकेले काटी है, यहाँ साथ ना कोई यार चले,

उस पार ना जाने क्या पायें, इस पार तो सब कुछ हार चले.

साँसों का कारवां

'आओ किसी शब् मुझे टूट के बिखरता देखो,
मेरी रगों में ज़हर जुदाई का उतरता देखो.

किस किस अदा से तुझे माँगा है रब से,
आओ कभी मुझे सजदों में सिसकता देखो.

तेरी तलाश में हमने खुद को खो दिया है,
मत आओ सामने मगर कहीं छुप के मुझे तड़पता देखो.

बड़े शौक से मर जायेंगे हम अगर
तुम सामने बैठ कर साँसों का कारवां टूटता देखो...

मेरी मायूसियाँ तनहाइयाँ


!!!!! ऐ वक़्त कभी लौट आ, मेरी जिंदगी उधार दे,
मुझे और कुछ अता ना कर, जो खो गया वो प्यार दे

मुझे वो ही लम्हे बक्श दे, जिनमे वो मेरे साथ था
फिर थाम कर ज़रा खुद को तू, मेरी जिंदगी सँवार दे,
...
मेरी तिशनगी की आंच में, है आवाज़ कही खो गयी
मेरे यार को आवाज़ दे, मेरी ओर से पुकार दे,

है आज मेरे साथ बस, मेरी मायूसियाँ तनहाइयाँ
मेरे यार ज़रा रहम कर, मुझे थोडा सा करार दे,

जो ना दे सके मुझे सुकून, तो ये इल्तेज़ा कुबूल कर
जहा यादें ना पहुँच सके, मुझे ऐसी ही मज़ार दे,

यहाँ हर तरफ अदावतें, नफरत-ओ-फरेब है,
जहा हर ज़हां में प्यार हो, कोई ऐसा संसार दे !!!!!

कहा उस ने.....



''
कहा उसने भरोसा दिल पे इतना नहीं करते .
कहा मेंने मोहब्बत में कभी सोचा नहीं करते
''
कहा उसने खुश रंग दुनिया के नज़रे हैं.
कहा मैने जब तुम हो पास ,हम कुछ देखा नहीं करते
''
कहा उसने मैं तुम से दूर हूँ लेकिन तुम्हारे पास हूँ
कहा मैंने सपनो से दिल को बहलाया नहीं करते.
''
कहा उसने तुम्हारी चाहत तुम्हे रुसवा कर देगी.
कहा मैंने शोहरत से घबराया नहीं करते
''
कहा उसने समझ जाओ मेरी जान समझ जाओ.
कहा मैंने दीवानों को समझाया नहीं करते !!

ऐ खुदा

ऐ खुदा

" तेरी इस दुनिया में ये मंजर क्यूँ है?

कहीं ज़ख्म तो कहीं पीठ में खंज़र क्यों है?

सुना है की तू हर ज़र्रे में है रहता,

तो फिर ज़मीं पर कही मस्जिद तो कही मंदिर क्यूँ है?

जब रहने वाले इस दुनिया के है तेरे ही बन्दे,

तो फिर कोई किसी का दोस्त और कोई दुश्मन क्यों है?

तू है लिखता है सब लोगो का मुकद्दर,

तो फिर कोई बदनसीब और कोई मुकद्दर का सिकंदर क्यों है? "

आदत बुरी भी है...

तुझ को गुरुर ए हुस्न है मुझ को सुरूर ए फ़न,
दोनों को खुदपसंदगी की लत बुरी भी है ,
तुझ में छुपा के खुद को मैं रख दूँ मग़र मुझे,
कुछ रख के भूल जाने की आदत बुरी भी है...