कभी मेरे दर पे तू भूलकर आती भी नहीं..
अपनी कोई दर्द भरी दास्तां सुनाती भी नहीं....
तेरे साये को भी मालूम नहीं मेरा नाम-पता...
जुबां तो है मगर तू मुझसे पूछती भी नहीं...
तू बता दे मुझे सच क्या है और झूठ क्या...
मैं क्या जानूंगा जब तू कहीं बोलती भी नहीं...
मैं सोचूं भी तो तू मुझको कहां मिलती है..
मुझे खोने के खयाल से तू डरती भी नही..!!!
अपनी कोई दर्द भरी दास्तां सुनाती भी नहीं....
तेरे साये को भी मालूम नहीं मेरा नाम-पता...
जुबां तो है मगर तू मुझसे पूछती भी नहीं...
तू बता दे मुझे सच क्या है और झूठ क्या...
मैं क्या जानूंगा जब तू कहीं बोलती भी नहीं...
मैं सोचूं भी तो तू मुझको कहां मिलती है..
मुझे खोने के खयाल से तू डरती भी नही..!!!