Thursday, May 7, 2015

वक्त कब आयेगा

नींद हमे अब आती नही
और चैन भी शायद ही आयेगा
आखरी साँस तुम्हारी बाँहो में लूँ
खुदा जाने मेरा वो वक्त कब आयेगा
एक अजीब सी हठ करने
लगा है मेरा पागल दिल आजकल
रोज़ कहता है तू इंतजार कर
वो जरूर आयेगा
लाख कोशिश करता हूँ
बिना याद किये सोने की
पर अजीब हाल है हमारा
नींद भी तभी आयेगी
जब तेरा ख्याल आयेगा
कौन सी कला सीखी है
तुमने नींद चुराने की
हमे भी सिखा दो,हमारे ना सही
किसी और के काम ये गुण आयेगा
पल पल में पलके भीग जाती है
हर आहट पर लगता है
मेरा यार जरूर आयेगा
अब सब्र करना सिखा रहा हूँ दिल को
क्योकि उन्होंने कहा था
"वक्त आयेगा पर वक्त पर ही आयेगा"

मगर कैसे

बहम सब दूर किये यारों ने सच मगर कैसे,
पर्दा-ए-फरेब यूं हटा जाकर अब मगर कैसे?
धोखा देना ही बन गई थी फितरत जिनकी,
बाज आएंगे अपनी हरकत से वो मगर कैसे?
चला था बज़्म ढूंढने को मैं इंसानी बस्ती में,
कदम-कदम पे मिले आदमी जब मगर कैसे।
जिनकी आदत में और नीयत में भी धोखा है,
सोचते अब वही धोखा तो हुआ मगर कैसे।
भटकते हैं तलाश-ए-ख़ुशी में रंज देके औरों को,
सकून मिल न पायेगा उनको कभी मगर ऐसे.
रिस्ता-ए-दोस्ती है कायम यकीनो-ऐतबार पर,
ये अक्शे-आइना है मगर दिखेगा ही जैसे तैसे।
चढ़ी एक बार हांडी काठ की चूल्हे पे गर तेरी,
बमुश्किल ख़ाक हाथ आएगी वो भी जैसे तैसे।
मैं सब को यार मानता गया ये सोच कर 'अली'
झूट होगा तो मुक़ाबिल आईने के टिकेगा कैसे?

कुछ कमी है

क्यों ये लगता है...कुछ कमी है
बात कोई लबों तक आकर रुकी है...
जाने किस बात पर पलकें झुकी है
आँखो में भी क्यों हल्की नमी है...
कौन सी बात दिल को लगी है
उसकी वफ़ा का आज भी य़की है...
कुछ ही लम्हे बस अपने साथ है
ज़िदग़ी हर पल फिसलती ही रही है...
साँसो में उमड़ती जज़्बातो की नदी है
धड़कती रहती सीने में एक सदी है...
रोशनी क्यों अधेंरो से यूँ घिरी है
आख़िर किस बात की सजा मिली है...

वास्तव में यह जिंदगी है

एक पिता अपने बेटे के साथ पहाड़ों की सैर पर निकला। अचानक बेटा गिर गया। चोट लगने पर उसके मुंह से
निकला , ' आह !!!'
तुरंत पहाड़ों में से कहीं - से आवाज
आई - ' आह !!!'
बेटा अचरज में रह गया। उसने फौरन पूछा - तुम कौन हो ?
सामने से वही सवाल आया , 'तुम कौन हो ?'
बेटा चिल्लाया , ' मैं तुम्हारी तारीफ करता हूं !'
पहाड़ों से जवाब आया , ' मैं तुम्हारी तारीफ करता हूं !'
अपनी बात की नकल करते देखकर बेटा गुस्से में चिल्लाया , '
डरपोक !'
जवाब मिला , ' डरपोक !'
उसने पिता की ओर देखा और पूछा , ' यह क्या हो रहा है ?'
पिता ने मुस्कुराते हुए कहा , ' बेटा , जरा ध्यान दो। '
इसके बाद पिता चिल्लाया , ' तुम चैंपियन हो !'
जवाब मिला , ' तुम चैंपियन हो !'
बेटे को हैरानी हुई लेकिन वह कुछ समझ नहीं सका।
इस पर पिता ने उसे समझाया , ' लोग इसे गूंज ( इको ) कहते हैं ,
लेकिन वास्तव में यह जिंदगी है। '
यह आपको हर चीज़ वापस लौटाती है , जो आप कहते हैं या करते
हैं। हमारी जिंदगी हमारे कामों का ही प्रतिबिंब है। अगर आप
दुनिया में ज्यादा प्यार पाना चाहते हैं
तो अपने दिल में ज्यादा प्यार पैदा करें। अगर अपनी टीम में ज्यादा काबिलियत चाहते हैं तो अपनी काबिलियत को
बढ़ाएं।
यह संबंध जिंदगी के हर पहलू , हर चीज में नजर आता है।