Wednesday, July 13, 2011
ek badnaseeb ka khat
Mujhe raah me ek badnaseeb ka khat mila
.
Kahi khun-e-jigar se likha hua , kahi aansuon se meeta hua!
पीना छोड़कर
पीना छोड़कर भी तुझको न भुला पाऊंगा साक़ी,
कोई आरजू या कोई हसरत जला जाऊंगा साक़ी,
मैं तेरे शहर के लोगो सा खुदगर्ज़ नहीं हूँ साक़ी,
कभी कभी यूँही तुझसे मिलने चला आऊंगा साक़ी.....
तुझे भूलने की मजबूरियां
एक तरफ तेरी यादों से यारियां बढ़ती जाती है,
दूसरे तुझे भूलने की मजबूरियां बढ़ती जाती है............
अजीब कशमकश कि मुन्तजिर जिस मंजिल का हूँ,
हर कदम पर उसीसे दूरियां बढ़ती जाती है............
मैं कहता हूँ क्या, वो समझते है क्या खुदा जाने,
पर इन्ही गफलतों में दुश्वारियां बढ़ती जाती है............
मैं मांगता हूँ ख़ुशी, वो ग़म भी नहीं देता अपने,
नाकाम कोशिशों से मेरी उदासियां बढ़ती जाती है............
मैं अपने गिरेबां में झांक खुद ही परेशां हूँ विशेष,
गुनाह बनती चाहतों की नाकामियां बढ़ती जाती है.....
दूसरे तुझे भूलने की मजबूरियां बढ़ती जाती है............
अजीब कशमकश कि मुन्तजिर जिस मंजिल का हूँ,
हर कदम पर उसीसे दूरियां बढ़ती जाती है............
मैं कहता हूँ क्या, वो समझते है क्या खुदा जाने,
पर इन्ही गफलतों में दुश्वारियां बढ़ती जाती है............
मैं मांगता हूँ ख़ुशी, वो ग़म भी नहीं देता अपने,
नाकाम कोशिशों से मेरी उदासियां बढ़ती जाती है............
मैं अपने गिरेबां में झांक खुद ही परेशां हूँ विशेष,
गुनाह बनती चाहतों की नाकामियां बढ़ती जाती है.....
फिर हुआ इसका वही
टूटे, बिखरे दिल की संभाल क्या करूँ,
फिर हुआ इसका वही हाल क्या करूँ....
न नींद का पता, न सुकून-ओ-चैन का,
रात खड़ी है बनके सवाल क्या करूँ.....
क़सम टूट जाए न ये बदलियाँ देखकर,
साक़ी बता तेरे बिखरे बाल क्या करूँ.....
वो जिद्दी है बहुत न आएगा यहाँ कभी,
फिर भला वीराना ये बहाल क्या करूँ...
मेरी सजा मुक़र्रर है गुनाह से पहले,
गवाहियों का फिर ये जंजाल क्या करूँ...
फिर हुआ इसका वही हाल क्या करूँ....
न नींद का पता, न सुकून-ओ-चैन का,
रात खड़ी है बनके सवाल क्या करूँ.....
क़सम टूट जाए न ये बदलियाँ देखकर,
साक़ी बता तेरे बिखरे बाल क्या करूँ.....
वो जिद्दी है बहुत न आएगा यहाँ कभी,
फिर भला वीराना ये बहाल क्या करूँ...
मेरी सजा मुक़र्रर है गुनाह से पहले,
गवाहियों का फिर ये जंजाल क्या करूँ...
मुहब्बत कि कहानी
यूँ अधूरी रही मुहब्बत कि कहानी न होती,
उसके दिल में अगर ये बदगुमानी न होती....
ज़िन्दगी प्यार की मिसाल बनके मुस्कराती,
बरबाद झगड़ों में अपनी जवानी न होती..
इश्क बातों बातों में ही तो असर करता है,
गुफ्तगुं जारी रहती तो परेशानी न होती......
उसके दिल में अगर ये बदगुमानी न होती....
ज़िन्दगी प्यार की मिसाल बनके मुस्कराती,
बरबाद झगड़ों में अपनी जवानी न होती..
इश्क बातों बातों में ही तो असर करता है,
गुफ्तगुं जारी रहती तो परेशानी न होती......
हाल-ऐ-दिल सुनाने से डरता हूँ
हाल-ऐ-दिल सुनाने से डरता हूँ,
मैं उसके रूठ जाने से डरता हूँ......
डरता नहीं सच्चे उस खुदा से,
पर इस झूठे ज़माने से डरता हूँ.....
वो बदगुमान मुझसे है इतना,
कि खुद को आजमाने से डरता हूँ.....
दिल जिसे भूल पाता नहीं फिर,
उसीके याद आ जाने से डरता हूँ.....
पानी पर बनी वो तस्वीर जैसे,
उसे हाथ भी लगाने से डरता हूँ.....
इश्क जायज है हर उम्र हर रिश्ते में,
ये बात उसे समझाने से डरता हूँ.....
मैं उसके रूठ जाने से डरता हूँ......
डरता नहीं सच्चे उस खुदा से,
पर इस झूठे ज़माने से डरता हूँ.....
वो बदगुमान मुझसे है इतना,
कि खुद को आजमाने से डरता हूँ.....
दिल जिसे भूल पाता नहीं फिर,
उसीके याद आ जाने से डरता हूँ.....
पानी पर बनी वो तस्वीर जैसे,
उसे हाथ भी लगाने से डरता हूँ.....
इश्क जायज है हर उम्र हर रिश्ते में,
ये बात उसे समझाने से डरता हूँ.....
मेरी ख़ताओं का हिसाब
मेरी ख़ताओं का हिसाब उसने गर रखा होता,
न जाने दूर कितना वो मुझसे हो गया होता....
मुहब्बत के उसूल सीख लेता मैं अगर उससे,
तो शायद मैं भी उसकी नजरो में खुदा होता....
शुक्रगुजार हूँ उसका हर हासिल-ऐ-मुकाम पर,
वो न साथ होता तो अब तक भटक रहा होता......
हैरत क्यूँ उसके रूखे से जवाब पर हुई मुझे,
अपने सवालों को मैंने भी तो थोड़ा परखा होता...
शाम की गुफ्तगुं मीठी अगर कर जाते विशेष,
रात भर तुम्हारा दीवाना चैन से तो सोया होता......
न जाने दूर कितना वो मुझसे हो गया होता....
मुहब्बत के उसूल सीख लेता मैं अगर उससे,
तो शायद मैं भी उसकी नजरो में खुदा होता....
शुक्रगुजार हूँ उसका हर हासिल-ऐ-मुकाम पर,
वो न साथ होता तो अब तक भटक रहा होता......
हैरत क्यूँ उसके रूखे से जवाब पर हुई मुझे,
अपने सवालों को मैंने भी तो थोड़ा परखा होता...
शाम की गुफ्तगुं मीठी अगर कर जाते विशेष,
रात भर तुम्हारा दीवाना चैन से तो सोया होता......
मेरी ख़ताओं का हिसाब उसने गर रखा होता,
न जाने दूर कितना वो मुझसे हो गया होता....
मुहब्बत के उसूल सीख लेता मैं अगर उससे,
तो शायद मैं भी उसकी नजरो में खुदा होता....
शुक्रगुजार हूँ उसका हर हासिल-ऐ-मुकाम पर,
वो न साथ होता तो अब तक भटक रहा होता......
हैरत क्यूँ उसके रूखे से जवाब पर हुई मुझे,
अपने सवालों को मैंने भी तो थोड़ा परखा होता...
शाम की गुफ्तगुं मीठी अगर कर जाते विशेष,
रात भर तुम्हारा दीवाना चैन से तो सोया होता......
न जाने दूर कितना वो मुझसे हो गया होता....
मुहब्बत के उसूल सीख लेता मैं अगर उससे,
तो शायद मैं भी उसकी नजरो में खुदा होता....
शुक्रगुजार हूँ उसका हर हासिल-ऐ-मुकाम पर,
वो न साथ होता तो अब तक भटक रहा होता......
हैरत क्यूँ उसके रूखे से जवाब पर हुई मुझे,
अपने सवालों को मैंने भी तो थोड़ा परखा होता...
शाम की गुफ्तगुं मीठी अगर कर जाते विशेष,
रात भर तुम्हारा दीवाना चैन से तो सोया होता......
तेरी यादों की धुंध
तेरी यादों की धुंध घनी है इतनी,
कि ये आफताब भी मिटा न पाए है,
क्या सुबह, क्या शाम, क्या रात,
ऐ सनम, हम तुझको भूल न पाए है.....
ये दुनिया उस दुनिया से रंगी है बड़ी,
जैसे रोशनी में शहर नहाए है,
तुझसे बिछड़कर यूँ लगता है लेकिन,
किसी वीराने में हम चले आए है....
है परेशानी की बात, कि कोई नहीं साथ,
फिर भी मन है कि बहका जाए है,
डसने लगते है जब तनहाई के लम्हे,
तेरी यादों आकर हमें बचाए है......
खामोश सा अटका दिल किसी पेड़ पर,
कटी पतंग सा आवारा हुआ जाए है,
तेरी चाहत के धागे पक्के है इतने,
बस तेरी और ही खिंचा चला आए है......
इश्क की मजबूरियां, हाय तुझसे ये दूरियां,
क्या है, क्यूँ है, समझ न पाए है,
मुमकिन नहीं तुझे पा लेना फिर भी,
दिल है कि तेरा ही हुआ जाए है.......
कि ये आफताब भी मिटा न पाए है,
क्या सुबह, क्या शाम, क्या रात,
ऐ सनम, हम तुझको भूल न पाए है.....
ये दुनिया उस दुनिया से रंगी है बड़ी,
जैसे रोशनी में शहर नहाए है,
तुझसे बिछड़कर यूँ लगता है लेकिन,
किसी वीराने में हम चले आए है....
है परेशानी की बात, कि कोई नहीं साथ,
फिर भी मन है कि बहका जाए है,
डसने लगते है जब तनहाई के लम्हे,
तेरी यादों आकर हमें बचाए है......
खामोश सा अटका दिल किसी पेड़ पर,
कटी पतंग सा आवारा हुआ जाए है,
तेरी चाहत के धागे पक्के है इतने,
बस तेरी और ही खिंचा चला आए है......
इश्क की मजबूरियां, हाय तुझसे ये दूरियां,
क्या है, क्यूँ है, समझ न पाए है,
मुमकिन नहीं तुझे पा लेना फिर भी,
दिल है कि तेरा ही हुआ जाए है.......
ग़ज़ल होती है
कटती नहीं तनहा जब रात तो ग़ज़ल होती है,
तू नहीं तेरी यादें हो साथ तो ग़ज़ल होती है....
कुछ कहना चाहूँ तुझसे और कह भी न पाऊं,
कोई ऐसी उठे दिल में बात तो ग़ज़ल होती है....
जो हर एक आरजू का हासिल है उससे अगर,
हो जाये बे-इरादा मुलाक़ात तो ग़ज़ल होती है....
कुछ मौसम का, कुछ उसका भी बदले मिजाज़,
और फिर उलझे ये ख़यालात तो ग़ज़ल होती है....
तुझे भुलाने की धुन में, मैं खुद को भुलाना चाहूँ,
ऐसे में बहकने लगे जज़बात तो ग़ज़ल होती है....
चाँद पूनम का खिड़की में जब दस्तक दे विशेष,
संग सितारों की लेकर बारात तो ग़ज़ल होती है....
Ek Shaks Pas Reh Ke
Ek Shaks Pas Reh
Ke Samjha Nahi Mujhe,
Is Baat Ka Malal Hai Shikwa Nahi
Mujhe,
Main Us Ko Bewafai Ka Ilzam Kaisay
...Dou,
Us Ne To Ibteda Se Hi Chaha Nahi
Mujhe,
Pathar Samajh Kar Paon? Se Thokr
Laga Dia,
Afsos Teri Aankh Ne Parkha Nahi
Mujhe,
Kya Umedein Baandh Kar Aaya Tha
Samnay,
Us Ne To Aankh Bahr Ke Dekha Nahi
Mujhe?!!!
Ke Samjha Nahi Mujhe,
Is Baat Ka Malal Hai Shikwa Nahi
Mujhe,
Main Us Ko Bewafai Ka Ilzam Kaisay
...Dou,
Us Ne To Ibteda Se Hi Chaha Nahi
Mujhe,
Pathar Samajh Kar Paon? Se Thokr
Laga Dia,
Afsos Teri Aankh Ne Parkha Nahi
Mujhe,
Kya Umedein Baandh Kar Aaya Tha
Samnay,
Us Ne To Aankh Bahr Ke Dekha Nahi
Mujhe?!!!
Ek Shaks Pas Reh
Ke Samjha Nahi Mujhe,
Is Baat Ka Malal Hai Shikwa Nahi
Mujhe,
Main Us Ko Bewafai Ka Ilzam Kaisay
...Dou,
Us Ne To Ibteda Se Hi Chaha Nahi
Mujhe,
Pathar Samajh Kar Paon? Se Thokr
Laga Dia,
Afsos Teri Aankh Ne Parkha Nahi
Mujhe,
Kya Umedein Baandh Kar Aaya Tha
Samnay,
Us Ne To Aankh Bahr Ke Dekha Nahi
Mujhe?!!!
Ke Samjha Nahi Mujhe,
Is Baat Ka Malal Hai Shikwa Nahi
Mujhe,
Main Us Ko Bewafai Ka Ilzam Kaisay
...Dou,
Us Ne To Ibteda Se Hi Chaha Nahi
Mujhe,
Pathar Samajh Kar Paon? Se Thokr
Laga Dia,
Afsos Teri Aankh Ne Parkha Nahi
Mujhe,
Kya Umedein Baandh Kar Aaya Tha
Samnay,
Us Ne To Aankh Bahr Ke Dekha Nahi
Mujhe?!!!
Subscribe to:
Posts (Atom)