मेरी ख़ताओं का हिसाब उसने गर रखा होता,
न जाने दूर कितना वो मुझसे हो गया होता....
मुहब्बत के उसूल सीख लेता मैं अगर उससे,
तो शायद मैं भी उसकी नजरो में खुदा होता....
शुक्रगुजार हूँ उसका हर हासिल-ऐ-मुकाम पर,
वो न साथ होता तो अब तक भटक रहा होता......
हैरत क्यूँ उसके रूखे से जवाब पर हुई मुझे,
अपने सवालों को मैंने भी तो थोड़ा परखा होता...
शाम की गुफ्तगुं मीठी अगर कर जाते विशेष,
रात भर तुम्हारा दीवाना चैन से तो सोया होता......
न जाने दूर कितना वो मुझसे हो गया होता....
मुहब्बत के उसूल सीख लेता मैं अगर उससे,
तो शायद मैं भी उसकी नजरो में खुदा होता....
शुक्रगुजार हूँ उसका हर हासिल-ऐ-मुकाम पर,
वो न साथ होता तो अब तक भटक रहा होता......
हैरत क्यूँ उसके रूखे से जवाब पर हुई मुझे,
अपने सवालों को मैंने भी तो थोड़ा परखा होता...
शाम की गुफ्तगुं मीठी अगर कर जाते विशेष,
रात भर तुम्हारा दीवाना चैन से तो सोया होता......
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