हाल-ऐ-दिल सुनाने से डरता हूँ,
मैं उसके रूठ जाने से डरता हूँ......
डरता नहीं सच्चे उस खुदा से,
पर इस झूठे ज़माने से डरता हूँ.....
वो बदगुमान मुझसे है इतना,
कि खुद को आजमाने से डरता हूँ.....
दिल जिसे भूल पाता नहीं फिर,
उसीके याद आ जाने से डरता हूँ.....
पानी पर बनी वो तस्वीर जैसे,
उसे हाथ भी लगाने से डरता हूँ.....
इश्क जायज है हर उम्र हर रिश्ते में,
ये बात उसे समझाने से डरता हूँ.....
मैं उसके रूठ जाने से डरता हूँ......
डरता नहीं सच्चे उस खुदा से,
पर इस झूठे ज़माने से डरता हूँ.....
वो बदगुमान मुझसे है इतना,
कि खुद को आजमाने से डरता हूँ.....
दिल जिसे भूल पाता नहीं फिर,
उसीके याद आ जाने से डरता हूँ.....
पानी पर बनी वो तस्वीर जैसे,
उसे हाथ भी लगाने से डरता हूँ.....
इश्क जायज है हर उम्र हर रिश्ते में,
ये बात उसे समझाने से डरता हूँ.....
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