Tuesday, May 12, 2015

सदा सिसकियों की

खुदा हमको ऐसी खुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे
ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी ज़ियादा सफ़ाई न दे
हॅंसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे
गुलामी की बरकत समझने लगें
असीरों को ऐसी रिहाई न दे
खुदा ऐसे एहसास का नाम है
रह सामने और दिखाई न दे

वही जाम है

वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है
ये वही ख़ुदा की ज़मीन है ये वही बुतों का निज़ाम है
बड़े शौक़ से मेरा घर जला कोई आँच न तुझपे आएगी
ये ज़ुबाँ किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी की ग़ुलाम है
मैं ये मानता हूँ मेरे दिए तेरी आँधियोँ ने बुझा दिए
मगर इक जुगनू हवाओं में अभी रौशनी का इमाम है

मेरे जैसा तू भी है

खूब निभेगी हम दोनों मे, मेरे जैसा तू भी है,
थोड़ा झूठा मैं भी ठहरा, थोड़ा झूठा तू भी है,
जंग अना की हार ही जाना बेहतर है अब लड़ने से,
मैं भी हूं टूटा टूटा सा बिखरा बिखरा तू भी है,
इक मुद्दत से फासला क़ायम सिर्फ हमारे बीच ही क्यूं,
सबसे मिलता रहता हूं मैं सबसे मिलता तू भी है,
अपने अपने दिल के अंदर सिमटे हुये हैं हम दोनो,
गुमसुम गुमसुम मैं भी बहुत हूं खोया खोया तू भी है...

सज़ायें न दे

दूसरों को हमारी सज़ायें न दे
चांदनी रात को बद-दुआयें न दे
फूल से आशिक़ी का हुनर सीख ले
तितलियाँ ख़ुद रुकेंगी सदायें न दे

सब गुनाहों का इक़रार करने लगें
इस क़दर ख़ुबसूरत सज़ायें न दे
मोतियों को छुपा सीपियों की तरह
बेवफ़ाओं को अपनी वफ़ायें न दे
मैं बिखर जाऊँगा आँसूओं की तरह
इस क़दर प्यार से बद-दुआयें न दे