Monday, April 20, 2015

मलाल किसलिए

अब बिछुडनें का करें,मलाल किसलिए|
ख्वाब देखें क्यों, करे ख्याल किसलिए||
मंज़िलें जब हो गयी, अपनी ज़ुदा-ज़ुदा,
कैसे रहोगे तन्हा ?ये सवाल किसलिए||
लौटना वापस नहीं मुझको है जब यहां,
देखना इस हुस्न का,जमाल किसलिए||
कब्र में मिलती है, सिर्फ एक को पनाह,
जिद है जाने की कहाँ,बवाल किसलिए||
छोड़कर"वीरान"को लगते हो खुश नहीं,
जश्न किस के वास्ते,धमाल किसलिए||

शहर जल जायेगा

गाँव मिट जायेगा शहर जल जायेगा
ज़िन्दगी तेरा चेहरा बदल जायेगा
कुछ लिखो मर्सिया मसनवी या ग़ज़ल
कोई काग़ज़ हो पानी में गल जायेगा
अब उसी दिन लिखूँगा दुखों की ग़ज़ल
जब मेरा हाथ लोहे में ढल जायेगा
मैं अगर मुस्कुरा कर उन्हें देख लूँ
क़ातिलों का इरादा बदल जायेगा
आज सूरज का रुख़ हमारी तरफ़
ये बदन मोम का है पिघल जायेगा

ग़म छुपाते रहे

ग़म छुपाते रहे मुस्कुराते रहे
महफ़िलों महफ़िलों गुनगुनाते रहे
आँसुओं से लिखी दिल की तहरीर को
फूल की पत्तियों से सजाते रहे
ग़ज़लें कुम्हला गईं नज़्में मुर्झा गईं
गीत सँवला गये साज़ चुप हो गये
फिर भी अहल-ए-चमन कितने ख़ुशज़ौक़ थे
नग़्मा-ए-फ़स्ल-ए-गुल गुनगुनाते रहे
तेरी साँसों की ख़ुश्बू लबों की महक
जाने कैसे हवायें उड़ा लाईं थी
वक़्त का हर क़दम भी बहकता रहा
ज़क़्त ले पाँव भी डगमगाते रहे

उसने मुझे चाहा बहुत है..

मै कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है
मगर उसने मुझे चाहा बहुत है..

खुदा इस शहर को महफूज़ रखे
ये बच्चों की तरह हँसता बहुत है

मै तुझसे रोज़ मिलना चाहता हूँ
मगर इस राह में खतरा बहुत है

मेरा दिल बारिशों में फूल जैसा
ये बच्चा रात में रोता बहुत है

इसे आंसू का एक कतरा न समझो
कुँआ है और ये गहरा बहुत है

उसे शोहरत ने तनहा कर दिया है
समंदर है मगर प्यासा बहुत है

मै एक लम्हे में सदियाँ देखता हूँ
तुम्हारे साथ एक लम्हा बहुत है

मेरा हँसना ज़रूरी हो गया है
यहाँ हर शख्स संजीदा बहुत है

बर्बाद ज़िन्दगी कर ली

भूल शायद बहुत बड़ी कर ली
दिल ने दुनिया से दोस्ती कर ली
तुम मुहब्बत को खेल कहते हो
हमने बर्बाद ज़िन्दगी कर ली
उसने देखा बड़ी इनायत से
आँखों आँखों में बात भी कर ली
आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है
बेवफ़ाई कभी- कभी कर ली
हम नहीं जानते चिराग़ों ने
क्यों अंधेरों से दोस्ती कर ली
धड़कनें दफ़्न हो गई होंगी
दिल में दीवार क्यों खड़ी कर ली