Monday, April 20, 2015

उसने मुझे चाहा बहुत है..

मै कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है
मगर उसने मुझे चाहा बहुत है..

खुदा इस शहर को महफूज़ रखे
ये बच्चों की तरह हँसता बहुत है

मै तुझसे रोज़ मिलना चाहता हूँ
मगर इस राह में खतरा बहुत है

मेरा दिल बारिशों में फूल जैसा
ये बच्चा रात में रोता बहुत है

इसे आंसू का एक कतरा न समझो
कुँआ है और ये गहरा बहुत है

उसे शोहरत ने तनहा कर दिया है
समंदर है मगर प्यासा बहुत है

मै एक लम्हे में सदियाँ देखता हूँ
तुम्हारे साथ एक लम्हा बहुत है

मेरा हँसना ज़रूरी हो गया है
यहाँ हर शख्स संजीदा बहुत है

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