क्यों ये लगता है...कुछ कमी है
बात कोई लबों तक आकर रुकी है...
जाने किस बात पर पलकें झुकी है
आँखो में भी क्यों हल्की नमी है...
कौन सी बात दिल को लगी है
उसकी वफ़ा का आज भी य़की है...
कुछ ही लम्हे बस अपने साथ है
ज़िदग़ी हर पल फिसलती ही रही है...
साँसो में उमड़ती जज़्बातो की नदी है
धड़कती रहती सीने में एक सदी है...
रोशनी क्यों अधेंरो से यूँ घिरी है
आख़िर किस बात की सजा मिली है...
बात कोई लबों तक आकर रुकी है...
जाने किस बात पर पलकें झुकी है
आँखो में भी क्यों हल्की नमी है...
कौन सी बात दिल को लगी है
उसकी वफ़ा का आज भी य़की है...
कुछ ही लम्हे बस अपने साथ है
ज़िदग़ी हर पल फिसलती ही रही है...
साँसो में उमड़ती जज़्बातो की नदी है
धड़कती रहती सीने में एक सदी है...
रोशनी क्यों अधेंरो से यूँ घिरी है
आख़िर किस बात की सजा मिली है...
No comments:
Post a Comment