कैसे कहूँ ज़िन्दगी को उसकी जरूरत नहीं,
झूठ कहता हूँ जो कहता उससे मोहब्बत नहीं.
जी कहता है चल किसी मयखाने में,
आज कुछ ठीक अपनी तबियत नहीं.
होश में ना सही नशे में ही कह दूंगा,
उसे छोड़कर जहाँ में किसीसे निस्बत नहीं.
( निस्बत = रिश्ता )
मैं कर तो लूँगा इज़हार कुछ हिम्मत जुटाकर,
पर हो इकरार कभी ऐसी मेरी किस्मत नहीं.
दिल लगाओगे तो दिल टूटेगा ही,
ये हकीक़त है यारों कोई नसीहत नहीं.
जीता हूँ इसलिए की अब मरने की फुर्सत नहीं,
वरना जीने की यारों मुझको कोई हसरत नहीं.
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