जिंदगी साफ़ बयां करती है मिट जाने को,
मैंने फिर घूर के देखा है क्या पैमाने को.
कितना बैचैन-ओ-बेबस है ये दिले-नादां,
ज़िद न करता है कहीं और अब ये जाने को,
मैंने फिर घूर के देखा है क्या पैमाने को.
कितना बैचैन-ओ-बेबस है ये दिले-नादां,
ज़िद न करता है कहीं और अब ये जाने को,
सांस लेकर तो लगा था कि हैं ज़िंदा हम भी,
फिर क्या समझेगा कोई और इस दीवाने को.
सिर्फ पाने की तमन्ना में उसे यूं भटका,
मैंने छोड़ा नहीं मसजिद को न बुतखाने को.
जिंदगी जीने की ख्वाहिश ही फकत थी बाकी,
बरना बाकी न बचा कुछ मेरे कर पाने को.
सांस तो मेरी तरह और भी लेते थे मगर,
न था पीने को और ना ही था कुछ खाने को.
मरता अपनी ख़ुशी से है यही कहते अक्सर,
कोई कहता न कभी जलने की परवाने को.
अब कहेंगे भी क्या शान-ओ-हालत अपनी,
शायरी शौक़ बनी जब न था कमाने को.
कितने नादीदा रहे ये भी बतायें किसको,
हम ने आँखों से पीया लरजते पैमाने को.
यार जाएँ बला से दहरो-हरम की जानिब,
'अली' गर जाएगा तो जायेगा मयखाने को.
पैमाने = शराब का गिलास, तमन्ना - इच्छा, बुतखाने = मंदिर, ख्वाहिश = आकांक्षा, नादीदा = लालायित/ललचाते, लरजते = छलकता हुआ, दहरो-हरम = मंदिर और मस्जिद, जानिब = ओर/तरफ, मयखाने = मदिरापान का स्थल।
फिर क्या समझेगा कोई और इस दीवाने को.
सिर्फ पाने की तमन्ना में उसे यूं भटका,
मैंने छोड़ा नहीं मसजिद को न बुतखाने को.
जिंदगी जीने की ख्वाहिश ही फकत थी बाकी,
बरना बाकी न बचा कुछ मेरे कर पाने को.
सांस तो मेरी तरह और भी लेते थे मगर,
न था पीने को और ना ही था कुछ खाने को.
मरता अपनी ख़ुशी से है यही कहते अक्सर,
कोई कहता न कभी जलने की परवाने को.
अब कहेंगे भी क्या शान-ओ-हालत अपनी,
शायरी शौक़ बनी जब न था कमाने को.
कितने नादीदा रहे ये भी बतायें किसको,
हम ने आँखों से पीया लरजते पैमाने को.
यार जाएँ बला से दहरो-हरम की जानिब,
'अली' गर जाएगा तो जायेगा मयखाने को.
पैमाने = शराब का गिलास, तमन्ना - इच्छा, बुतखाने = मंदिर, ख्वाहिश = आकांक्षा, नादीदा = लालायित/ललचाते, लरजते = छलकता हुआ, दहरो-हरम = मंदिर और मस्जिद, जानिब = ओर/तरफ, मयखाने = मदिरापान का स्थल।
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