Saturday, April 4, 2015

कुछ एहसान चुकाने थे..!!

हम तो चलो दिवाने थे
तुम तो मगर सयाने थे
चिड़िया जाल न देख सकी
सिर्फ नज़र में दाने थे
लो वो फिर से रूठ गये
मुश्किल से तो माने थे
कुछ तो मेरी ग़ज़लें थी
कुछ उनके अफ़साने थे
हमने खुद को बेच दिया
कुछ एहसान चुकाने थे..!!

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