Wednesday, May 6, 2015

वास्तविक अर्थ

"माँ , ओ माँ ! देख तो तेरे लिए क्या लाया हूँ...? "
माँ को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ ! ये उसके बेटे की आवाज़ थी ! वो उसे ही पुकार रहा था. हाँ , उसका बेटा उसके लिए कुछ लाया है...आज कई महीनों बाद...वो तो समझी थी कि बेटे ने उसे भुला दिया...घर के एक कोने में फर्नीचर की तरह पड़े रहना उनकी नियति बन गया था...पति की मृत्यु ने एकदम अकेला कर दिया था..एक समय था जब इसी घर में उनका राज चलता था...मगर जबसे बहू आई थी तबसे...
"माँ कबसे आवाज़ दे रहा हूँ ! कहाँ खोयी हो ? लो, ज़रा खोलके तो देखो ..
पैकेट में साड़ी थी...माँ की आँखें भर आयीं..
"कितना गलत समझामैंने अपने बेटे को..! वो मुझे भूला नहीं है..आज भी माँ के लिए उसके दिल में प्यार है ! "
माँ के ह्रदय से अधिक सुगम कोई स्थान नहीं...एक ही पल में वो सब कुछ भूल गयी...अकेलापन , बहू के ताने , दुःख तकलीफ...इतने महीनों में बहाए अनगिनत अश्रु.. सब कुछ ...
"माँ , तुमसे एक काम था."
माँ अपना हाथ साड़ी पर हाथ फिरा रही थी...
" बोल न बेटा .."
"माँ ...ये कुछ पेपर हैं...इन पर तुम्हारे साइन चाहिए."
"कैसे पेपर बेटा ?"
" माँ वो पिताजी ने एक प्लॉट लिया था. तीन साल पहले. उसके बारे में आज ही पता चला है. वो तुम्हारे नाम है.कहीं कोई और कब्ज़ा न कर ले. तुम ये पेपर साइन कर दो तो प्लॉट मेरे नाम........ "
माँ को आगे कुछ सुनाई नहीं दिया..वो साड़ी उन्हें चुभने लगी थी..बेटे के मन में अचानक उमड़े इस प्यार का वास्तविक अर्थ उन्हें समझ आ चुका था...
-किरण

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