खुले बाल,लाल-लाल रक्तिम आँखें जिस पर सुरमे की रेख कोई 35 बरस की उस
महिला को लिए एक 60 साला बुढिया जगेसर काका के पास ले आई थी जिनकी सोखा के
रूप में ख्याति थी।पूरा गांव देखने उमड़ पड़ा तो मैं भी कौतुहल वश बेटे के
साथ चला गया।
"बोल कऊन है ते,काहे
बिटिया को परेशान करे बदे लपटि गए...बोल नहीं ते भसम कई देब" जगेसर काका
मिर्च का धुआँ सुँघाते बुदबुदाए जा रहे थे,वह झूम रही थी और अजीब आवाज में
अस्पष्ट सा कुछ बोल रही थी।
तभी उस औरत ने जगेसर काका को उठा को पटक
दिया...लोग भयभीत हो भागने लगे...वहीं मैं और बेटा खड़े रहे...तभी बेटा
उपहास उड़ाकर हँसते हुए कहा
"पापाजी चलिए न ये सब नौटंकी है"
"हम्म तू शराब पीता है,इधर उधर बाइक दौड़ता है न..." (जब कि वो किसी व्यसन
में नहीं)कहकर वो महिला बेटे की तरफ खूंखार रूप धर दौड़ पड़ी बेटा आगे वो
पीछे...मैं तमाशबीन देखता रहा कुछ समझ न आया...
तभी देखता क्या हूँ... "अरे बचावा हो बचावा ...हे जगेसर काका बचाई लै हमका.... ई हमैं लील जाई बचावा...."
आगे-आगे वो औरत पीछे अपना शेरू(मेरा कुत्ता) हर्डल रेस का नजारा पेश कर
रहे थे....लड़का जंजीर थामे हँसा जा रहा था....जिन्न भाग गया था।
डीडीएम त्रिपाठी
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