Sunday, October 22, 2017

इस थकते-हांफते शहर में

इस थकते-हांफते शहर में
कुछ चीजें बार-बार होती हैं,
जिंदगी कभी खलबली भरी रात
तो कभी फुर्सत का इतवार होती है।

बुजुर्गों के माथे की झुर्रियां
धूप पर कुहनी टिकाए होती हैं,
जिंदगी गांवों की सिंदूरी शाम
तो कभी शराब सी बदनाम होती है।

कालांतर में पढ़ी जाए
"इतिहास" वो किताब होती है,
जिंदगी कभी रोटी की खुश्बू सी महकती
तो कभी पसीनायी दुर्गंध होती है।

रहता है आंखों में डर
तो कभी प्रेम से सराबोर होती है,
जिंदगी बाप का छियालिसवाँ साल
तो कभी बेटे का 23वां साल होती है।

पेग बनाने के लिए गिलास में
उड़ेली गयी शराब होती है,
जिंदगी तर्जनी पर कसे कंचे का निशाना
तो कभी Lic के प्रीमियम का हिसाब होती है।
  
परायी नार से हुई तकरार
आजकल बलात्कार होती है,
जिंदगी टीनएज की अल्हड़ता
तो कभी वयस्क होने का अहसास होती है।

बीयर की बोतल,ब्लू फिल्में,स्त्री के वक्ष
अब ये बातें आम होती हैं,
जिंदगी टपरी के पास खड़े होकर
फूंके गए सुट्टे से निकले धुएं सी आज़ाद होती है।

इस थकते-हांफते शहर में
कुछ चीजें बार-बार होती हैं,
जिंदगी कभी खलबली भरी रात
तो कभी फुर्सत का इतवार होती है।

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