Friday, February 3, 2012

मुझे और कहीं ले चल

मुझे और कहीं ले चल
जहाँ रात कभी भी सोई न हो
जहाँ सुबह किसी पे रोई न हो
जहाँ हिज़्र ने वहशत बोई न हो
जहाँ कोई किसी का कोई न हो

मुझे और कहीं ले चल; 

जहाँ शहर हों सारे वीराने
जहाँ लोग सभी हों बेगाने
जहाँ सब के सब हों दीवाने
जहाँ कोई हमें न पहचाने

मुझे और कहीं ले चल 

जहाँ नफरत दिल में बस न सके
जहाँ कोई किसी को डस न सके
जहाँ कोई किसी पे हंस न सके
जहाँ कोई भी गुंजल कस न सके!

मुझे और कहीं ले चल

जहाँ दर्द किसी को रास न हो
जहाँ कोई भी उदास न हो
जहाँ ज़ुल्मत की बू-बास न हो
जहाँ तू भी ज्यादा पास न हो!

मुझे और कहीं ले चल........

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