Wednesday, May 2, 2012

धुआं उड़ा रहा हूँ

आज फिर एक सिगरेट जला रहा हूँ
फिर एक तीली बुझा रहा हूँ
उसकी नज़र में ये एक गुनाह था
मैं तो बस उसके वादे भुला रहा हूँ
समझना मत इसे मेरी आदत
मैं तो बस धुआं उड़ा रहा हूँ
ये उसकी यादों के सिलसिले हैं
मैं उसकी यादें जला रहा हूँ
मैं पी कर इतना बहक चूका हूँ
की गम के किस्से सुना रहा हूँ
अगर तुम्हे भी गम है तो मेरे पास आओ
मैं पी रहा हूँ और पिला रहा हूँ
हैं मेरी तो आँखें नम
मगर मैं सबको हँसा रहा हूँ
खो कर अपनी ज़िन्दगी में
अपने बे इन्तहा प्यार को भुला रहा हूँ
एक सिगरेट की शमा के बहाने मैं अपने आप को जला रहा हूँ
मैं आज फिर एक सिगरेट जला रहा हूँ

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