Tuesday, September 25, 2012

खट्टा मीठा अनजाना सा


खट्टा मीठा अनजाना सा, रूठा साजन बेगाना सा

शहर कि गलियाँ शोर बहुत पर, सभी कुछ लगता वीराना सा

दर्द हिज्र का मुझे दे गया, एक गज़ब का नजराना सा

साकी तुझ बिन ये मैखाना, और पैमाना बेमाना सा

शोख शमां कि लौ में जलनें, आया पतंगा परवाना सा

बालों में ज़र्दी है अब भी, “नील” है उसका दीवाना सा....

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