Monday, May 13, 2013

उद्धत भाव से

मोहित करती है
वह तस्‍वीर
जो बसी है रग-रग में

डरती हूँ
कि छू कर उसे
मैली ना कर दूँ

हरे पत्‍तों से घिरे गुलाब की तरह
ख़ूबसूरत हो तुम
पर इसकी उम्‍मीद नहीं
कि तुम्‍हें देख सकूँ

इसलिए
उद्धत भाव से
अपनी बुद्धि मंद करना चाहती हूँ।

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