Friday, May 27, 2011

रात ऐ साक़ी,


देख ढलती जाती, सुबह से शाम, शाम से रात ऐ साक़ी,
खुदी, बेखुदी के एक जैसे हुए जाते है हालात ऐ साक़ी.....

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