Tuesday, July 12, 2011

ज़िन्दगी

हर सुबह ग़मों की नई इबारत है ज़िन्दगी,
हर शाम होश से हुई बग़ावत है ज़िन्दगी,

यही होना था नाकाम हसरतों का हासिल,
हर लम्हा दिल पे वही क़यामत है ज़िन्दगी....

तुझे पाने की आरजू में सब आजमाया है,
हर रोज नया खुदा नई इबादत है ज़िन्दगी.....

फिर मिट जाना होगा, बिना उफ़-ओ-आह के,
फिर उन आँखों में वही शरारत है ज़िन्दगी....

फितरत परस्त लोगो से, फरेब खाकर भी,
मेरी ये सादा-दिली सही सलामत है ज़िन्दगी....

सुना है किसीको ये तनहाई यूँ जीने नहीं देती,
मुझे उसकी यादों की रही इनायत है ज़िन्दगी..

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