नहीं होती अगर बारिश तो पत्थर हो गए होते,
ये सारे लहलहाते खेत बंजर हो गए होते,
तेरे दामन से सारी शहर को सैलाब से रोका,
नहीं तो मैरे ये आँसू समन्दर हो गए होते,
तुम्हें अहले सियासत ने कहीं का भी नहीं रक्खा,
हमारे साथ रहते तो सुख़नवर हो गए होते,
अगर आदाब कर लेते तो मसनद मिल गई होती,
अगर लहजा बदल लेते गवर्नर हो गए होते...
ये सारे लहलहाते खेत बंजर हो गए होते,
तेरे दामन से सारी शहर को सैलाब से रोका,
नहीं तो मैरे ये आँसू समन्दर हो गए होते,
तुम्हें अहले सियासत ने कहीं का भी नहीं रक्खा,
हमारे साथ रहते तो सुख़नवर हो गए होते,
अगर आदाब कर लेते तो मसनद मिल गई होती,
अगर लहजा बदल लेते गवर्नर हो गए होते...
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