Sunday, July 3, 2011

बुझी हुई शमाओ को देख रात भर जलाता रहा हु मैं

भटके हुए रस्तो पर उम्र भर चलता रहा हु मैं



ना मिली मंजिल मुझे ना मिले हमराही दोस्तों

हर मोड़ पर गिर कर खुद सम्हलता रहा हु मैं



तरसा हु रोशनी को जब से मिली है आँखे

टूट कर हर रात तारों सा चमकता रहा हु मैं



क्या हु कैसा हु किसी से ये क्या कहू

झूठ की माटी से सच को गढ़ता रहा हु मैं



उसने भी दिल में दर्द आँखों में सागर भर दिए

एक बूंद पानी के लिए मचलता रहा हु मैं



बुझी हुई शमाओ को देख रात भर जलाता रहा हु मैं

भटके हुए रस्तो पर उम्र भर चलता रहा हु मैं

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