माना बहुत दूर हैं तू-और दूर हो जाएगी तू,
मेरी यादों से कब तलक खुद को छुपाएगी तू,
मैं तो बहता पानी हूँ तेरी जिन्दगी का,
कभी तो आखों से बहाएगी तू .........
उम्मीदों का होंसला लिए रोके बैठा हूँ खुद को,
कभी तो मेरी यादों से सहम जाएगी तू..........
बद से भी बद्तार हैं हालात मेरे,
कभी तो झूठे से ही अपनाएगी तू,
किस कदर करूं बयां मेरी तन्हाई का आलम,
कभी तो खावों में भी जाग जाएगी तू........
तुझे लगा की एक पत्थर से मोहब्बत की तुने ,
कैसे कहूँ बहुत याद आएगी तू...........
आज नाराज सवेरा हैं और अँधेरी साँझ मेरी,
कभी तो मेरा भी दिया जलाएगी तू.........
मेरी यादों से कब तलक खुद को छुपाएगी तू,
मैं तो बहता पानी हूँ तेरी जिन्दगी का,
कभी तो आखों से बहाएगी तू .........
उम्मीदों का होंसला लिए रोके बैठा हूँ खुद को,
कभी तो मेरी यादों से सहम जाएगी तू..........
बद से भी बद्तार हैं हालात मेरे,
कभी तो झूठे से ही अपनाएगी तू,
किस कदर करूं बयां मेरी तन्हाई का आलम,
कभी तो खावों में भी जाग जाएगी तू........
तुझे लगा की एक पत्थर से मोहब्बत की तुने ,
कैसे कहूँ बहुत याद आएगी तू...........
आज नाराज सवेरा हैं और अँधेरी साँझ मेरी,
कभी तो मेरा भी दिया जलाएगी तू.........
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