"माँ"
तुझे पहचानुगा कैसे?
तुझे देखा ही नहीं
ढूढ़ा करता हूं तुम्हे
अपने चेहरे में ही कहीं
तुझे पहचानुगा कैसे?
तुझे देखा ही नहीं
ढूढ़ा करता हूं तुम्हे
अपने चेहरे में ही कहीं
लोग कहते हैं
मेरी आँखे मेरी माँ सी है
यूं तो लबरेज़ हैं पानी से
मगर प्यासी हैँ
कान में छेद है
पैदायशी आया होगा
तूने मन्नत के लीये
कान छिदाया होगा
सामने दाँतो का वक्फा है
तेरे भी होगा
एक चक्कर
तेरे पांव के तले भी होगा
जाने किस जल्दी में थी
जन्म दिया,दौड़ गयी
क्या खुदा देख लिया था
की मुझे छोड़ गयी
मेल के देखता हूं
मिल ही जाये तूझसी कहीं
तेरे बिना ओपरी लगती है
मुझे सारी जमीं
तुझे पहचानुगा कैसे?
तुझे देखा ही नहीं
माँ
मेरी आँखे मेरी माँ सी है
यूं तो लबरेज़ हैं पानी से
मगर प्यासी हैँ
कान में छेद है
पैदायशी आया होगा
तूने मन्नत के लीये
कान छिदाया होगा
सामने दाँतो का वक्फा है
तेरे भी होगा
एक चक्कर
तेरे पांव के तले भी होगा
जाने किस जल्दी में थी
जन्म दिया,दौड़ गयी
क्या खुदा देख लिया था
की मुझे छोड़ गयी
मेल के देखता हूं
मिल ही जाये तूझसी कहीं
तेरे बिना ओपरी लगती है
मुझे सारी जमीं
तुझे पहचानुगा कैसे?
तुझे देखा ही नहीं
माँ