Tuesday, March 31, 2015

"माँ" तुझे पहचानुगा कैसे?

"माँ"
तुझे पहचानुगा कैसे?
तुझे देखा ही नहीं
ढूढ़ा करता हूं तुम्हे
अपने चेहरे में ही कहीं

लोग कहते हैं
मेरी आँखे मेरी माँ सी है
यूं तो लबरेज़ हैं पानी से
मगर प्यासी हैँ
कान में छेद है
पैदायशी आया होगा
तूने मन्नत के लीये
कान छिदाया होगा
सामने दाँतो का वक्फा है
तेरे भी होगा
एक चक्कर
तेरे पांव के तले भी होगा
जाने किस जल्दी में थी
जन्म दिया,दौड़ गयी
क्या खुदा देख लिया था
की मुझे छोड़ गयी
मेल के देखता हूं
मिल ही जाये तूझसी कहीं
तेरे बिना ओपरी लगती है
मुझे सारी जमीं
तुझे पहचानुगा कैसे?
तुझे देखा ही नहीं
माँ

Ek Khwaab jo guzraa hai

Ek Khwaab jo guzraa hai abhi pichhle baras ka,
Aatank ka, Ghaplo.n ka, Juluso.n ka, Hawas Ka,
Har rang se ek rang naya Jhaank raha hai,
Sailaab ka, Tufaan ka, baarish ka, Umas ka.....
Ye rengte mausam, Ye khisakte huye din raat,
Ye badli huyi duniya, badalte huye haalat,
Ek tootey huye chaak pe hum ghoom rahe hai.n,
Maaloom nahi ab ke azaab aaye ke saugaat....
Deewar ke khushrang calender khudaa haafiz,
Ae jaate huye maah december khuda haafiz,
Aankhe.n nayi ummid liye cheekh rahi.n hai.n,
Ae umra ke chalte huye chakkar khuda haafiz.....
Bhuchaal agar aaye to bhuchaal mubarak,
Janjaal agar aaye to janjaal mubarak,
Baarud ke ek dher pe baitthe huye hum log,
Kis dhoom se kahte hai.n naya saal mubarak......

मुस्कराहट...

मेरे तसव्वुर में होती है तेरे ख्यालों की बेवक़्त बारिशें...
मैं यूँ बेवजह ही नहीं लेके फिरती हूँ ये सौंधी सी मुस्कराहट...

TAMAM UMR

TAMAM UMR MAR MAR
KE JEETA RAHA HUN MAI
AIY DOST AZIYYATON KA
SAFAR KHATM BHI
HOGA KABHI

MOhabbat Dikh Gaiiiiii

mai chaha kr bhi kuch bol na saka
Dil k Darwaje ko khol na saka
wo kab Dil ko chaknachoor kar gai
Meri jindagi ko mujhse door kr gaiii
Kasoor uska nhi meri ankhon ka hai
jisko na jane kese uski Ankhon mai
MOhabbat Dikh Gaiiiiii

SHIKWA

SUNO !!!!!!!!
Mujhe Dukh Iss Baat Ka Nahi'n
Ke Meri Zaat Ko Muntashir Karnay Walae
Hath Teray Thy.

Mujhe Dukh Faqat Iss Baat Ka Hai
Meri Reza Reza Zaat Ko Samaitnay Walay
Hath Teray Nahi'n Thy

Monday, March 30, 2015

तेरी गली का पता

याद है मुझे आज भी तेरी गली का पता,
शहर छोड़े बरसों हुये ये अलग बात है!

हर इक चिराग कि लो

हर इक चिराग कि लो ऐसी सोई-सोई थी
वो शाम जैसे किसी से बिछड के रोयी थी
नहा गया थे मै कल जुगनुओ कि बारिश में
वो मेरे कंधे पे सर रख के खूब रोयी थी
कदम-कदम पे लहू के निशान ऐसे कैसे है
ये सरजमी तो मेरे आंसुओ ने धोयी थी
मकाँ के साथ वो पोधा भी जल गया जिसमे
महकते फूल थे फूलो में एक तितली थी
खुद उसके बाप ने पहचान कर न पहचाना
वो लड़की पिछले फसादात में जो खोयी थी.

उसके ख्यालों में

मैंने जिससे प्यार किया है याद हमेशा आता है।
हर पल उसका ही चेहरा आँखों में मुस्काता है।
उसको लेकर जाने क्या क्या मन में सोचा करता हूँ ,
इन बेचैनी सी भर जाती तनहा दिल घबराता है।
आँखों ने जब से था उसकी सूरत का दीदार किया ,
नहीं दूसरा कोई इनको कभी ज़रा भी भाता है।
नहीं मिले जो अगर कभी वो लुटा पिटा सा लगता हूँ ,
और सामने आ जाए तो तन पत्थर हो जाता है।
उसकी बातें कानों में बस शहद घोलती रहतीं हैं ,
ज़रा ज़रा में रूठा करना उसका अब याद आता है।
कोई चाहे प्यार कहे या इसको इक दीवानापन ,
उसके ख्यालों में मानों ये वक्त ठहर सा जाता है।

बात लिखनी है

मुझे क्या बात लिखनी है
कि अब मेरे लिए
कभी चांदी कभी सोने की
कलमें आती हैं.. ...