Friday, June 10, 2011

बिछड्ने की रात

बिना तुमको लिए और एक शाम आई
शराब ही फिर दर्दे दिल को काम आई

आहटें रात भर सुनता रहता हुं मैं
हर दम खाली चिट्ठियां मेरे नाम आई

तुम्हे क्या मालूम अपने बीमार का हाल
जिसे ना दवा काम आई ना दुआ काम आई

महफ़िल में सब अपनी-अपनी सुनाते रहे
मैनें होंठ सी लिए जब उनकी बात आई

ना वो मेरा हो सका ना मैं किसी और का
सोचता हुं अक्सर ज़िदंगी किस काम आई

नही भूलता  जाते वक्त वो रोना उसका
मुझको याद हमेशा वो बिछड्ने की रात आई

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