धूप में पावों का जलना और है
पड़ गए छालों से उभरना और है ...
समंदर की चाहें जितनी बाते कर लो
बैठ कश्ती में मौज से लड़ना और है ...
आँखों में ख्वाब सजाना आसान है
कभी टूटते तो अश्क का लरजना और है ...
बाग़ में मुस्कुराते गुलों पर बैठी
चुप चाप तितलियाँ पकड़ना और है ...
अभी मन को तुम आज़ाद घूमने दो
क़ैद परिंदों के पर बाँधना और है ...
खुले हैं दरवाज़े इंतज़ार में अब तक
उस का लौट के नहीं पहुचना और है ...
लिखने को लिख दी है आज ग़ज़ल हमने
उससे लफ्ज़ - लफ्ज़ समझ सकना और है ...
ज़ख्म हरे होने का सबब जो हो
वक़्त के साथ घाव का भरना और है ...
पड़ गए छालों से उभरना और है ...
समंदर की चाहें जितनी बाते कर लो
बैठ कश्ती में मौज से लड़ना और है ...
आँखों में ख्वाब सजाना आसान है
कभी टूटते तो अश्क का लरजना और है ...
बाग़ में मुस्कुराते गुलों पर बैठी
चुप चाप तितलियाँ पकड़ना और है ...
अभी मन को तुम आज़ाद घूमने दो
क़ैद परिंदों के पर बाँधना और है ...
खुले हैं दरवाज़े इंतज़ार में अब तक
उस का लौट के नहीं पहुचना और है ...
लिखने को लिख दी है आज ग़ज़ल हमने
उससे लफ्ज़ - लफ्ज़ समझ सकना और है ...
ज़ख्म हरे होने का सबब जो हो
वक़्त के साथ घाव का भरना और है ...
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